![]() |
Photo by freestocks.org from Pexels |
वाणी को तू जान रे, बिल्कुल तीर समान ।
छूटा शर क्या आ सके, वापस पुनः कमान ।।
कटुक वचन मत बोलिए, चुभता तीर समान ।
बात का घाव भरता नहीँ, जानत सकल जहान ।।
सज्जन को है चाहिए, करे न कभी बकवास ।
इससे शक्ति का सदा, होता बहुत ह्रास ।।
ईश्वर ने सबको दिये, एक जीभ दो कान ।
इसका तो मतलब यही, बोलेँ कम अधिक देँ ध्यान ।।
सत्य बोलने मेँ कभी, करना नहिँ तू देर ।
झूठ कभी मत बोलिए, इसमेँ तो है फेर ।।
सत्य वचन मेँ देखिये, कितना है प्रताप ।
इसे बोलने मेँ कभी, होता नहिँ संताप ।।
झूठ भी बोला जा सके, यदि इसका हो अभ्यास ।
किन्तु झूठ का तो सदा, हो जाय परदा फास ।।
तेरी अति प्रशंसा करे, उससे सजग हो जाय ।
कहिँ ऐसा करके तुझे, रहा तो नहीँ गिराय ।।
चुप रहने मेँ फायदा, तेरे कर्कश बोल ।
मिल भी कुछ नहिँ पायगा,खुल जायगी पोल ।।
कोयल से हम सीख लेँ, मीठे बोलेँ बैन ।
दूसरोँ को तो खुश करेँ, खुद भी पावेँ चैन ।।