वाणी

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    वाणी को तू जान रे, बिल्कुल तीर समान ।
    छूटा शर क्या आ सके, वापस पुनः कमान ।।

    कटुक वचन मत बोलिए, चुभता तीर समान ।
    बात का घाव भरता नहीँ, जानत सकल जहान ।।

    सज्जन को है चाहिए, करे न कभी बकवास ।
    इससे शक्ति का सदा, होता बहुत ह्रास ।।

    ईश्वर ने सबको दिये, एक जीभ दो कान ।
    इसका तो मतलब यही, बोलेँ कम अधिक देँ ध्यान ।।

    सत्य बोलने मेँ कभी, करना नहिँ तू देर ।
    झूठ कभी मत बोलिए, इसमेँ तो है फेर ।।

    सत्य वचन मेँ देखिये, कितना है प्रताप ।
    इसे बोलने मेँ कभी, होता नहिँ संताप ।।

    झूठ भी बोला जा सके, यदि इसका हो अभ्यास ।
    किन्तु झूठ का तो सदा, हो जाय परदा फास ।।

    तेरी अति प्रशंसा करे, उससे सजग हो जाय ।
    कहिँ ऐसा करके तुझे, रहा तो नहीँ गिराय ।।

    चुप रहने मेँ फायदा, तेरे कर्कश बोल ।
    मिल भी कुछ नहिँ पायगा,खुल जायगी पोल ।।

    कोयल से हम सीख लेँ, मीठे बोलेँ बैन ।
    दूसरोँ को तो खुश करेँ, खुद भी पावेँ चैन ।।
    कमैंट्स