इंसान की भूख INSAN KI BHOOKH

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    सृष्टि में जितने भी सजीव प्राणी हैं सभी भोजन करते हैं। भोजन से ही वे पलते- बढ़ते हैं। भोजन सभी की मूलभूत आवश्यकता है। पशु पक्षी जीवजंतु सभी अपना अपना आहार खाते हैं। पेड़ पौधे अपना भोजन स्वयं बना लेते हैं। पशु पक्षी और जीवजंतु अपना भोजन स्वयं नहीं बना पाते हैं उन्हें अपने भोजन के लिए दूसरे जीवजंतुओं और वनस्पतियों पर निर्भर रहना पड़ता है। 
               पेट भरने के लिए पशु पक्षी और मनुष्य सभी को प्रयास करना पड़ता है। खाली बैठे किसी को भोजन नहीं मिलता है। सुबह होते ही पशु ,पक्षी भोजन की तलाश में निकल पड़ते हैं। मनुष्य भी सुबह होते ही अपने काम में जुट जाता हैऔर किसी तरह अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति करने का प्रयास करता है। 
                जिसप्रकार पशु, पक्षियों को भोजन की तलाश में काफी दूर तक जाना पड़ जाता है ठीक उसी तरह इंसान को भी अपने जीविकोपार्जन के लिए देश विदेश जाना पड़ता है। पशु पक्षियों की आवश्कताएं कम होती हैं उनका पेट जल्दी भर जाता है किन्तु मनुष्य की आवश्यकताएं अधिक होती हैं उसका पेट कभी भरता ही नहीं है।
              सभ्यता के विकास के साथ साथ मनुष्य के पेट का भी विकास हुआ है। अब उसकी भूख भी बहुत अधिक बढ़ गई है । उसे नौ खाये तेरह की भूख सदा बनी रहती है। 
               समाज में झूठी मान प्रतिष्ठा और दिखावे के चक्कर में इंसान को जिस चीज़ की जरूरत नहीं होती है उसे भी खरीदने की सोचता है। उसके पास पैसा नहीं हो तो कर्ज लेने में भी नहीं हिचकता है। पड़ोसी के पास कोई चीज हो और उसके पास न हो तो उसे और उसके परिवार को उस वस्तु न होना सदा खटकता रहता है । वो उस वस्तु को खरीदकर ही चैन की सांस लेता है। 
               इंसान का एक काम पूरा नहीं होता है उससे पहले ही दूसरे काम के बारे में सोचने लगता है। उसकी आमदनी उसके खर्च से सदा कम रहती है। वो सदा निन्यानवे के चक्कर में फंसा रहता है उसका सौ कभी पूरा नहीं होता है। 
               पैसा एक ऐसा टानिक है जो इंसान की भूख बढ़ा देता है। ऐसा देखने में आया है कि धनवान व्यक्ति गरीबों का शोषण करते हैं और अपनी सम्पत्ति को बढ़ाने के लिए कोई भी गलत कार्य करने से नहीं चूकते हैं। उनकी भूख दिनों दिन बढ़ती रहती है। 
               जीवन में भूख होना स्वाभाविक है, इसमें कोई दो राय नहीं है। सोचना यह है कि हमारे जीवन में कब और कितनी भूख होनी चाहिए। 
                बचपन मौजमस्ती का समय होता है। इसमें बालक को खेल खिलौने ,खाने पीने की चीजें और उसके जरूरत के सामान की आवश्यकता होती है। यह सबकुछ कैसे होगा यह सब उसके माता पिता के सोचने का विषय है। 
               युवावस्था आते ही युवकों की जिम्मेदारियां बढ़ जाती है। यही व्यक्ति के विकास करने का समय होता है। इस अवस्था में मेहनत करके ईमानदारी से खूब पैसा कमाना चाहिए जिससे अपना, परिवार, समाज और देश का भला हो सके। अपने स्वास्थ्य का ध्यान रखते हुए पूर्ण मनोयोग से अपना कर्म करना चाहिए। स्वास्थ्य सर्वोपरि है। पैसा कमाने के चक्कर में में स्वास्थ्य खराब हो गया तो ऐसा पैसा किस काम का? 
              समय के साथ साथ इंसान की सोच में भी बदलाव होना चाहिए। पूरी जिंदगी पैसे के पीछे भागना अच्छी बात नहीं है। इंसान को कोई ऐसा काम करना चाहिए जिससे उसे सुखशांति मिल सके क्योंकि हम जो भी कार्य करते हैं उसमें हमारा मकसद सुख प्राप्त करना ही होता है। 
              भूख चाहे जैसी भी हो इंसान के जीवन में भूख सदा बनी रहनी चाहिए, यह मेरा मानना है। 
              

       
               
                
               
            
    कमैंट्स