जग का ईश्वर एक है, सब प्राणिन मेँ व्याप्त।
जन अपने अज्ञान वश, करेँ न उसको प्राप्त॥
ईश्वर का सच्चा भगत, जग मेँ वही कहाय।
सकल जगत के प्राणिन पै, जो निज प्रेम दर्शाय ॥
ईश्वर की पूजा क्या, इसे न समझे कोय।
जो मेहनत से काम करे, वही तो पूजा होय॥
ईश्वर के दर्शन करे, दीनन मेँ तू जाय।
मानव सेवा मेँ सदा, ईश्वर को है पाय॥
अन्तःकरण को शुद्ध कर, ईश्वर का धर ध्यान।
इससे सदा प्रसन्न रहेँ, तुझसे हैँ भगवान॥
हे ईश्वर मैँ तो सदा, दाता जानूँ तोय।
जिसमेँ तो कल्यान हो, सो तू देना मोय॥
मैँ का तुझसे माँग लूँ, माँगन मेँ तो फेर ।
ज्ञान बुद्धि देना मुझे, मत कर देना देर ॥
अति सूक्ष्म व्यापक अति, वर्णन किया न जाय ।
जो जाने कह न सके, कहे सो जान न पाय ॥
जन अपने अज्ञान वश, करेँ न उसको प्राप्त॥
ईश्वर का सच्चा भगत, जग मेँ वही कहाय।
सकल जगत के प्राणिन पै, जो निज प्रेम दर्शाय ॥
ईश्वर की पूजा क्या, इसे न समझे कोय।
जो मेहनत से काम करे, वही तो पूजा होय॥
ईश्वर के दर्शन करे, दीनन मेँ तू जाय।
मानव सेवा मेँ सदा, ईश्वर को है पाय॥
अन्तःकरण को शुद्ध कर, ईश्वर का धर ध्यान।
इससे सदा प्रसन्न रहेँ, तुझसे हैँ भगवान॥
हे ईश्वर मैँ तो सदा, दाता जानूँ तोय।
जिसमेँ तो कल्यान हो, सो तू देना मोय॥
मैँ का तुझसे माँग लूँ, माँगन मेँ तो फेर ।
ज्ञान बुद्धि देना मुझे, मत कर देना देर ॥
अति सूक्ष्म व्यापक अति, वर्णन किया न जाय ।
जो जाने कह न सके, कहे सो जान न पाय ॥