मनुष्य में विनम्रता का भाव जन्मजात नहीं होता है। बच्चा जब छोटा होता है तो हँसना, रोना, खाना- पीना और सोना इत्यादि उसकी स्वभाविक क्रियाएँ होती है। जैसे- जैसे बच्चा बड़ा होता है वैसे- वैसे अन्य लोगों के सम्पर्क में रहकर अच्छी बुरी हर प्रकार की बातें सीखता है। समाज में रहकर सीखने की क्रिया को समाजीकरण कहा जाता है। समाजीकरण की क्रिया मनुष्य में जीवन भर चलती रहती है।
बालक में मानवीय गुणों यथा- प्रेम, सेवा, सहयोग, विनम्रता आदि का विकास समाज में रहकर ही होता है। अरस्तू ने कहा है "Man is a social animal." इस वाक्य में से यदि social शब्द को हटा दिया जाए तो Man is a animal. शेष रह जाता है।
वास्तव में देखा जाए , यदि कोई मनुष्य दूसरों के सुख दुःख में साथ न देकर केवल अपने ही बारे में सोचता है तो उसका यह व्यवहार पशुवत व्यवहार ही कहा जाएगा।
बालक हो अथवा बड़ा उसमें गुण या अवगुण का विकास धीरे धीरे होता है। जो जैसे लोगो ं के साथ रहता है उनमें रहकर ही अच्छी बुरी बातें सीखता है। उसे जो लोग आकर्षित करते हैं उनके साथ रहना पसंद करता है और उनसे धीरे धीरे सहज भाव से वो सबकुछ सीखता है जो उसे अच्छा लगता है।
मनुष्य का अनुभव, ज्ञान, समय और उसकी परिस्थितियां उसके जीवन को प्रभावित करतीं हैं। प्रेम, सेवा, सहयोग, विनम्रता आदि गुणों का उसमें विकास हो जाता है। कठिन परिस्थितियां मनुष्य को यह सब सिखा देती हैं। कहावत है जिसके पैर न फटी विवाई, वो क्या जाने पीर पराई। जिन लोगों का जन्म सम्पन्न परिवार में होता है उन्हें दूसरों के दुख का अहसास बहुत कम या नहीं होता है।
अच्छे संस्कार वाला व्यक्ति ही विनम्र होता है। जिसप्रकार फल आने पर वृक्ष झुक जाता है ठीक उसीतरह गुणवान व्यक्ति विनम्र हो जाता है। इसके विपरीत जिस व्यक्ति में गुण और ज्ञान की कमी होती है वो अधिक बोलता है। कहावत भी है- अधजल गगरी छलकत जाये। आपने देखा होगा कम गुणों वाले लोग अपने गुणों का बखान अधिक करते हैं।
विनम्रता का भाव समाज में मनुष्य का सम्मान बढ़ाता है । विनम्र व्यक्ति दूसरों की इज्जत करता है और वे लोग उसकी इज्जत करते हैं। विनम्र होने से कोई छोटा नहीं हो जाता है बल्कि लोग उसे अच्छा मानने लगते हैं और उसका सहयोग करते हैं। कविवर बिहारीलाल का इस संबंध में यह दोहा उल्लेखनीय है-
नर की और नल नीर की गति एकै कर जोय।
जेतो नीचो हो चलै तेतो ऊँचो होय।।
विनम्र व्यक्ति में घमण्ड नहीं होता है इसलिए वह मिलनसार होता है। अमीर- गरीब में कोई भेदभाव नहीं रखता है। हर किसी से प्रेमपूर्वक मिलता है। कोई उससे ईर्ष्या नहीं करता है क्योंकि विनम्र व्यक्ति सदा दूसरों को बड़ा कहता है और स्वयं को छोटा। विनम्र व्यक्ति विगड़ती हुई बातचीत को भी आसानी से सुलझा लेता है।
विनम्रता का एक लाभ यह भी है कि विनम्र व्यक्ति हर किसी का दिल जीत लेता है। दोनों में आत्मीयता बढ़ जाती है। मेलजोल बढ़ जाने पर विनम्र व्यक्ति अपने जीवन से जुड़ी समस्याओं का समाधान अपने से श्रेष्ठ साथी से सीख लेता है। रामायण में ऐसा ही प्रसंग श्रीराम और रावण के युद्ध के समय आता है। रावण जब घायल अवस्था में पड़ा होता है तब श्रीराम अपने छोटे भाई लक्ष्मण को उससे राजनीति की शिक्षा प्राप्त करने के लिए उसके पास भेजते हैं। लक्ष्मणजी रावण के पास जाते हैं और यथोचित अभिवादन किये बिना ही उसके सिरहाने खड़े हो जाते हैं। लक्ष्मणजी रावण से बातचीत करने का प्रयास करते हैं किन्तु रावण टस-से-मस नहीं होता है और लक्ष्मणजी झक मारकर वापस आ जाते हैं। फिर श्रीराम स्वयं जाते हैं और विनम्रतापूर्वक रावण का अभिवादन कर उसके पैरों की ओर खड़े हो जाते हैं तत्पश्चात उससे राजनीति से संबंधित जरूरी बातें पूछते हैं। रावण श्रीराम को राजनीति से संबंधित महत्वपूर्ण सभी बातें बता देता है। यह है विनम्रता का प्रभाव !
व्यक्ति के जीवन में आये दिन कोई न कोई समस्या बनी रहती है। आपसी तनाव आज के समय की प्रमुख समस्या है। विनम्रता आपसी तनाव के रोग में औषधि का काम करती है। विनम्र व्यक्ति स्वयं का और जो उसके सम्पर्क में है उसका भी मानसिक तनाव कम करता है। तनाव कम हो जाने से खुशी का माहौल बन जाता है और कुछ समय के लिए दोनों अपने मन को हल्का महसूस करते हैं। इसप्रकार विनम्रता का गुण जीवन के लिए वरदान है।
अब केवल यह कहना शेष है कि विनम्रता जीवन से जुड़ी अनेक जटिलताओं और समस्याओं का समाधान है। विनम्रता को प्रगति का आधार और सफलता का द्वार कहा जाये तो कोई अतिशयोक्ति न होगी।