पूर्वाग्रह और हमारा जीवन | POORVAGRAH AUR HAMAARA JEEVAN # BLOG

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    हम सब समाज में रहते हैं। यदि कोई ऐसा कहे कि उसे समाज की आवश्यकता नहीं है तो उसका यह कथन निराधार और हास्यास्पद है। इस संबंध में प्रसिद्ध विद्वान अरस्तू का कथन उल्लेखनीय है उनके अनुसार, "मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। कोई ऐसा व्यक्ति जो समाज से बाहर रह सकता है या जिसे समाज की आवश्यकता नहीं है तो वो या तो देवता है या फिर पशु।"
           हम जब एक दूसरे के साथ उठते बैठते हैं तो कुछ न कुछ बातचीत अवश्य करते हैं। अपने मन की बात दूसरों से कहते हैं और उनकी बात भी सुनते हैं। इस प्रकार विचारों का आदान प्रदान होता है। बातचीत जब खुलेमन से होती है तो उस समय बात करने वाला निसंकोच अपने मन की बात कह देता है। ऐसे समय में बात करने वालों के दिल एक हो जाये और किसी की बुराई करने का मौका मिल जाए तो दिल खोलकर उसकी बुराई करते हैं। बुराई करने में जो आनंद आता है वो आनंद किसी की अच्छाई बताने में नहीं आता है। बुराई अच्छाई की अपेक्षा अधिक तेजी से फैलती है। कहावत भी है-नेकी नौ कोस बदी सौ कोस। 
             जब दो लोग आपस में बात करते हैं तो अपने दुःख सुख की बात करते हैं और कभी -कभी किसी अन्य व्यक्ति के जीवन से जुड़ी अच्छी बुरी बातों का मन्थन करते है। ऐसे में वे दूसरों के द्वारा कही सुनी बातों को आधार बनाकर किसी को अच्छा या बुरा बताने का प्रयास करते हैं ,यह एक आम बात है। ऐसा लगता है कि आज के समय में लोग अपने बारे में कम और दूसरों के बारे में अधिक सोचते हैं। भला बनने के लिए सदा दूसरों को सलाह देते रहते हैं क्योंकि उनके पास देने के लिए सलाह से सस्ता और कुछ है भी नहीं। 
            समाज में अनेक प्रकार के लोग होते हैं। कुछ लोगों का स्वभाव ऐसा होता है कि वे अपने सामने किसी को कुछ समझते नही हैं । ऐसे लोग बिना सिर पैर की बातें करते हैं। इनकी बातें काल्पनिक , निराधार और अतार्किक होती हैं। मनगढंत रूप से अच्छा बुरा कहने में इन्हें आनंद आता है। 
             'किसी व्यक्ति ,वस्तु अथवा किसी विचार के पक्ष या विपक्ष में अतार्किक या अनुचित रूप से लिया गया निर्णय पूर्वाग्रह कहलाता है'। पूर्वाग्रह भावनाओं पर आधारित होते हैं। ये अधिकतर नकारात्मक होते हैं, कभी-कभी इनका सकारात्मक रूप भी होता है। गोस्वामी तुलसीदास जी ने श्री रामचरितमानस में लिखा है-'जाकी रही भवना जैसी। प्रभु मूरत देखी तिन तैसी।। हमारी भावना हमारी सोच को प्रभावित करती है और हमारी सोच के कारण कोई व्यक्ति हमें भला या बुरा दिखाई देता है। 
              दूसरों की कही सुनी बातों को मान लेना, गलतफहमी, अज्ञानता और अपने आप को दूसरों से श्रेष्ठ बताना पूर्वाग्रह के मुख्य कारण हैं। 
               हमारे जीवन में अनेक प्रकार के पूर्वाग्रह होते हैं। जाति, लिंग, क्षेत्र, सम्प्रदाय और धर्म पूर्वाग्रह के मुख्य आधार है ं। जीवन के हर क्षेत्र में पूर्वाग्रह दिखाई देते हैं। यदि इनको सूचीबद्ध किया जाये तो एक लम्बी सूची बन जायेगी। यहाँ पर कुछ मुख्य पूर्वाग्रहों पर विचार करेंगे। 
              कुछ जातियों के लोग अपने आप को अन्य जातियों से श्रेष्ठ बताते हैं , उनके दिमाग में सदा ऐसा विचार रहता कि हमारी जाति एक ऊँची जाति है। हमारी गिनती प्रतिष्ठित लोगों में है। जाट लोगों का कहना है कि अनपढ़ जाट, पढ़ा बराबर। पढ़ा जाट खुदा बराबर। 
             कायस्थ जाति के लोग अपने आप को बहुत पढ़ा लिखा बताते हैं। कहते हैं हमारे यहाँ कलम की पूजा होती है। बात-बात में कायस्थ खोपड़ी कहकर अपने आप को बुद्धिजीवी बताते हैं, कहते हैं हमें कोई मूर्ख नहीं बना सकता है। 
              इसी प्रकार अहीर, गड़रिया और गूजर जाति के लोगों का मुख्य व्यवसाय पशु पालन होता है। इनके बारे में कहा जाता है- अहीर, गड़रिया, गूजर। तीनों चाहे ं ऊजर। 
               परिवार में सास बहू की नहीं बनती है। इनकी न बनने का कारण भी पूर्वाग्रह ही है। शादी से पहले ही लड़की इधर उधर से सास के बारे में अनेक ऐसी बातें सुनी होती है कि सास बहुत खराब होती हैं। बहू का ध्यान नहीं रखती हैं।शादी के बाद जब लड़की अपनी ससुराल जाती है तो उसका पूर्वाग्रह सक्रिय हो जाता है और उसे वे सभी कमियाँ अपनी सास में दिखाई देने लगती हैं जो उसने पहले से सुन रखीं थीं। 
                ऐसा माना जाता है कि पुरुषों की अपेक्षा महिलाओं में विवेक की कमी होती है। स्त्रियाँ अधिक भावुक होती हैं उन्हें आसानी से बहकाया जा सकता है। किसी लड़का और लड़की में प्रेम हो जाता है और वे दोनों भाग जाते हैं तो सदा यही कहा जाता है कि अमुक लड़का लड़की को भगाकर ले गया। कानून भी लड़के को ही दोषी मानता है और लड़के के खिलाफ कानूनी कार्रवाई होती है। 
                किसी एक धर्म या सम्प्रदाय के लोग अपने धर्म या सम्प्रदाय को दूसरे धर्म या सम्प्रदाय से श्रेष्ठ बताते हैं। सनातन धर्म को मानने वाले इस्लाम धर्म की कमियाँ गिनाते हैं जबकि इस्लाम को मानने वाले लोग सनातन धर्म में कमियाँ बताते हैं। कभी -कभी एक ही धर्म के लोग अपने सम्प्रदाय को श्रेष्ठ बताते हैं और दूसरे सम्प्रदाय के लोगों की निंदा करते हैं। 
               क्षेत्र के आधार पर भी लोगों में पूर्वाग्रह देखने को मिलता है। शहर में रहने वाले लोग गाँव को अच्छा नहीं मानते हैं और गाँव में रहने वाले लोगों को गंँवार कहकर संबोधित करते हैं। शहर के लोग गाँव के लोगों को अनपढ़ और मूर्ख समझते हैं। शहर के लोग अपनी लड़की या लड़के का रिश्ता भी गाँव में करना पसन्द नहीं करते हैं और शहर में ही रिश्ते करते हैं। 
               जब हम एक दूसरे से बात करते हैं तो अक्सर पूछ लेते हैं कि आप क्या काम करते हो? यदि कोई यह कहे कि वो नौकरी करता है तो बात करने वाला यह जरूर पूछता है कि नौकरी सरकारी है या प्राइवेट। सरकारी नौकरी को लोग अच्छा मानते हैं भले ही इसमें कम वेतन मिलता हो। 
              शिक्षा और स्वास्थ्य भी हमारे जीवन के मुख्य पहलू हैं। समाज में , शिक्षा को लेकर भी  ऐसी अवधारणा है कि प्राइवेट स्कूलों में अच्छी पढ़ाई होती है और सरकारी स्कूलों में पढ़ाई नहीं होती है। इसीप्रकार यह कहा जाता है कि प्राइवेट अस्पतालों में मरीजों की देखभाल और इलाज ठीक से होता है इसके विपरीत सरकारी अस्पतालों में इलाज की सुविधाएं नहीं होती हैं ऐसा लोगों का मानना है। 
                पूर्वाग्रह हमारे जीवन को बहुत अधिक प्रभावित करते हैं। कोई भी ऐसा इंसान नहीं है जो पूर्वाग्रह से प्रभावित न हो। इनका हमारे जीवन पर अमिट प्रभाव होता है। यदि किसी के मन में किसी के प्रति अच्छा- बुरा जैसा भी विचार बन गया है तो वह सदा उसी के अनुरूप  उससे व्यवहार करता है। 

     
             



            





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