प्रातः काल जब मैं उठता, आंँगन मे दिखती फुलवारी |
खुद तो बैठी मुझे घुमाती,
आंँगन की ऐसी फुलवारी|
मैं नहाऊँ तो गोसल जाऊँ,
वर्षा में नहाती फुलवारी |
नहाय धोयकर, सज संवर कर,
आँगन में बैठी फुलवारी |
जब-जब हँसती और मुस्कराती,
मुझको खुश करती फुलवारी |
सच पूँछो तो तुम्हें बताऊँ,
दुल्हन सी लगती फुलवारी |