Guru

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     गुरु

    दीपक लेकर हाथ मेँ,  सब मेँ ढूँढा जाय ।
    तीन लोक नौ खण्ड मेँ, गुरु से बडा न पाय ॥
    तू अज्ञानी है महा, गुरु ज्ञान की खान ।
    सब कुछ दै जो गुरु मिले, तो भी सस्ता जान ॥
    जो तू चाहे की तुझे,  शीघ्र ज्ञान मिल जाय। 
    फिर क्या है तू सोचता, क्योँ नहिँ गुरु बनाय ॥
    ईश्वर के तो रूँठते, गुरु  के पास तू जाय।
    जब गुरु ही रूँठ गया,  फिर है कौन सहाय ॥
    मत तू ऐसा जान रे, गुरु को तुझसे बैर।
    पीट पीट कर भी सदा,  तेरी चाहत खैर॥
    बाहर से हो अति कठोर, अन्दर कोमल होय।
    ऐसा गुरु ही तो सदा,  ज्ञान सिखावै तोय ॥ 
    गुरु के गुन तौ अनंत हैँ,  जान सकै जो कोय।
    मुझ अज्ञानी से कहाँ,  इनका वरनन होय॥
    कमैंट्स