मेरा जन्म किसी पौधशाला में नहीं हुआ। घरवालों का मानना है कि फल का कोई बीज किसी तरह दीवार के सहारे मिट्टी में दबा रहा वही पर एक नन्हें पौधे की मुस्कान दिखाई दी। ऐसा देखकर सभी आश्चर्यचकित और प्रसन्न हुए। किसी ने ठीक ही कहा है 'जाको राखे साईंया मार सके ना कोय'। बात भी सही है यहाँ पर पौधा उगने के लिए कोई खास जगह नहीं थी। किन्तु ईश्वर की कृपा से सब सम्भव है। ईश्वर असम्भव को भी सम्भव बना देते हैं। कबीर दास जी ने भी इस बात को स्वीकार किया है तभी तो कहा---साहब से सब होत है बन्दे ते कुछ नाहिं। राई ते पर्वत करे पर्वत राई माहिं।।
समय बीतता गया अब मुझमें अनेक पत्तियाँ निकल आयीं। घरवाले खुशी खुशी बड़े मनोयोग से सदा मेरी देखभाल करते रहते थे किन्तु उन्हें एक चिंता सदा सताती रहती थी कि मेरे बड़ा होने के लिए उचित और पर्याप्त जगह नहीं थी। घरवाले मेरा पालन पोषण एक बच्चे की तरह कर रहे थे। मैं उनके घर में अकेला फल का पौधा था जो उन्हें ईश्वर की कृपा से प्राप्त हुआ था। उचित देखभाल के परिणामस्वरूप मेरी बढ़वार अच्छी हो रही थी। अब हर हालत में उन्हें मुझे दूसरी जगह रोपना था। मुझे सुरक्षित उखाड़ना भी एक मुश्किल काम था क्योंकि मेरी कुछ जड़े दीवार में भी थीं। मुझे सुरक्षित निकालने के लिए दीवार की कुछ ईंटें भी उखाड़नी पड़ीं। बड़े प्रयास से मेरी जड़ों को मिट्टी सहित उखाड़ लिया। अब मेरी धकधक भी कम हुईऔर मैंने भी संतोष की सांस ली।
घर का आंगन कच्चा ही था अत: सर्वसम्मति से यह निर्णय लिया गया कि मुझे अन्य किसी दूसरी जगह न लगाकर आंगन में ही लगा दिया जाय। इस समय घर के सभी सदस्य मुझे रोपने में अपना अपना सहयोग कर रहे थे। किसी ने गड्ढा खोदा तो किसी ने गढ्ढे में खाद, मिट्टी और कीटनाशक डाली। किसी ने मुझे लाकर गड्ढे में सुरक्षित रखा तो किसी गड्ढे की मिट्टी ठीक से दबाई और मेरी जड़ों की भरपूर सिचाई की उन्हें डर था कि कहीं मैं सूख न जाऊँ।
जब ये सब घरवाले मुझे रोपने में अपनी सहभागिता सुनिश्चित कर रहे थे तो मेरे मन में अनेक प्रश्न उठ रहे थे--पहला यह कि इन घरवालों में कितना मेलजोल और प्रेमभाव है। ये सब एक दूसरे का भरपूर सहयोग करते हैं। दूसरा यह कि भविष्य में जब मुझपर फल लगें तो कोई उन्हें फल लेने से इनकार न कर दे। तीसरा यह भी हो सकता है कि मुझे ईश्वर से मिली भेंट समझकर अपना सहयोग दे रहे होंगे। वैसे अधिकतर लोग फल प्राप्त होने की इच्छा से ही काम करते हैं।
मेरा दूसरे स्थान पर रोपना मेरे लिए पुनर्जन्म से कम नहीं था क्योंकि मेरे बीज को किसी थैली की मिट्टी में डाल कर नहीं उगाया गया था
जिसे सुरक्षा पूर्वक रोप दिया जाता। मेरे सूखने का अब भी भय था अत: मेरी सिचाई के लिए मेरी जड़ के चारों ओर एक थाला बना दिया जिससे पर्याप्त जल से भरपूर नमी बनी रहे। मेरी देखभाल में कोई कमी नहीं रखी। कोई बच्चा या पशु मुझे नुकसान न पहुँचाये इसका पूरा ध्यान रखा गया।
जब कोई परेशानी न हो और आराम से जिंदगी गुजर रही हो तो समय का कुछ पता नहीं चलता है। मेरे साथ भी ऐसा ही हुआ। दो तीन साल कब बीत गये कुछ पता ही नहीं चला। मैं दिन प्रतिदिन बड़ा हो रहा था। घर के सभी लोगों की नजरें सदा मुझपर टिकी रहतीं। वे सदा ये देखते रहते की उनकी तपस्या कब पूरी होगी अर्थात मुझपर फल लगना कब शुरू होंगे। इसबार जब मेरी किस्म के अन्य पेड़ों पर फूल आया तब मुझपर फूल आया। अब सबकी मेहनत रंग लाई और पहली बार मुझपर फल आये। मुझपर पहली बार फल आना इनके लिए किसी उत्सव से कम नहीं था। सबने ईश्वर को धन्यवाद दिया और खूब जश्न मनाया।
फल आने के बाद भी मैं अपनी पिछली जिंदगी के बारे में सदा सोचता रहता था। मैंने देखा जीवन में विकास तभी सम्भव है जब पौधे को पौधशाला से ले जाकर किसी ऐसे वातावरण में उसे रोप दिया जाय जहाँ उसके लिए पर्याप्त खुली जगह और अनुकूल जलवायु हो। शरुवात में परेशानी जरूर हो सकती है जैसे मुझे हुई किन्तु विकास घर छोड़ने से ही सम्भव हो सकता है।
फल तो आने लगे थे किन्तु अभी मेरा आकार बहुत बड़ा नहीं हुआ था। आकार छोटा होने के कारण अभी मुझपर फल भी कम आ रहे थे। छोटे बड़े सभी खड़े होकर नीचे से मेरे फल तोड़ लिया करते। किसी बच्चे की पहुँच फलों तक नहीं होती और वो मुझपर चढ़कर फल तोड़ता तो डालियाँ झुककर जमीन पर आ जाती ंं। कोई बाहर वाला कभी फल तोड़ता तो डालियों के टूटने की कोई परवाह नहीं करता और उछलकर डाली पर लटक जाता और फल तोड़ लेता। ये सब मेरे छोटेपन का फायदा उठा रहे थे। छोटे को हर कोई दबा लेता है।
समय बीतता गया। धीरे धीरे मेरा आकार भी बड़ा हो गया। अब मुझपर काफी मात्रा में फल आने लगे। मेरे फलों के मिठास की चर्चा पहले ही फैल चुकी थी। अब पेड़ पर फल होने पर, कोई मिलने आता अथवा कोई मेहमान आता तो उसके स्वागत में चाय आदि के साथ साथ मेरे फल भी अवश्य खिलाये जाते। पड़ोसी और रिश्तेदारों ने मेरे फलों का खूब आनन्द लिया और फलों के मिठास की भूरि भूरि प्रशंसा भी की।
फल पोषक तत्वों और विटामिनों से भरपूर होते हैं और स्वास्थ्य के लिए अच्छे बताये जाते हैं। चिकित्सक शुगर के मरीजों को मेरे फल खाने की सलाह देते हैं। मेरे फल में फाइबर काफी मात्र में पाया जाता है जोकि पेट के लिए अच्छा माना जाता है। मेरे अधपके फल को भूनकर खाने से खांसी में आराम मिलता है। मेरी पत्तियाँ भी गुणकारी होती हैं, इनका काढ़ा बनाकर पीने से सर्दी खांसी में काफी आराम मिलता है।
अमरूद के कुछ वृक्षों पर साल में एक बार और कुछ वृक्षों पर साल में दो बार फल आते हैं। मुझपर साल में दो बार फल आते हैं। मैं इसे सौभाग्य समझूँ या दुर्भाग्य कुछ समझ नहीं पा रहा हूँ। ऐसा देखने में आया है कि अनेक बार दूसरे के लिए जो अच्छाई होती है वो स्वयं के लिए दुखदायी होती है। मेरे साथ भी कुछ ऐसा ही है। निरन्तर फल आने से मैं कमजोर हो रहा हूँ और मुझे अनेक बीमारियों ने घेर लिया है। अब मेरी हालत दिनोंदिन खराब होती जा रही है। अब मेरे फलों में भी रोग लगने लगा है और पहले जैसी गुणवत्ता नहीं रही है।
घरवाले भी अब पहले जैसा धयान मुझपर नहीं दे रहे हैं। उन्हें भी ऐसा लग रहा है कि मैं उन्हें पहले जैसे सुन्दर फल नहीं दे पा रहा हूँ अतैव मेरी देखभाल करने से भी कोई लाभ मिलने वाला नहीं है। लाभ की इच्छा से प्रेरित होकर ही अधिकतर इंसान काम करते हैं।
मैं अपने बारे में जब भी सोचता हूँ तो मुझे सदा अपने जन्म के बारे में बताई गई कहानी याद आ जाती है। ऐसा लगता है कि ईश्वर ने दूसरों की भलाई के लिए ही मुझे जन्म दिया है। कोई मेरे साथ भलाई करे अथवा न करे मेरा जन्म ही दूसरों की भलाई करने के लिए हुआ है और मैं जीवन भर दूसरों की भलाई करता रहूँगा। यही मेरा कर्म है, यही मेरा धर्म है।