दौलत का तू मत कभी, करना रे अभिमान ।
छाया माया नहिँ रुके, ऐसा कहेँ विद्वान ।।
पैसे से ही मिलत हैँ, जगत के सब सम्मान ।
फिर क्योँ न हम सब करेँ, बचत लगाकर ध्यान ।।
बचत सदा ही कीजिए, इसकी समझो आस ।
काम समय पर आयगी, पैसोँ की होगी प्यास ।।
घर मेँ है जब धन बढे, तब खर्च बढ जाय ।
लेकिन धन के घटन पै, खर्च न घटने पाय ।।
मानव को यदि चाहिए, हर क्षेत्र का दाम ।
इसके लिए वह करता रहे, कुछ न कुछ फिर काम ।।
धन को या तो खर्च करो, अथवा कर दो दान ।
नही तो इसका नाश हो, ऐसा कहेँ विद्वान ।।