ईश्वर दिखता क्यों नहीं ? ISHWAR DIKHTA KYON NAHI

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    मैं कोई वैज्ञानिक या दार्शनिक नहीं हूँ और न ही कोई ऐसा चर्चित व्यक्ति हूँ कि हर कोई मेरी बात को तबज्जो दे। लोगों की सोच ऐसी होती है कि वे किसी बात का आकलन इससे करते हैं कि अमुक बात किसके द्वारा कही गई है। यदि कोई आम आदमी कोई खास बात भी कहे तो भी उसकी बात को कोई महत्व नहीं दिया जाता है इसके विपरीत किसी खास व्यक्ति के द्वारा कही गई प्रत्येक बात महत्वपूर्ण दिखती है। बहरहाल जो भी है, भारतीय संविधान में प्रत्येक नागरिक को विचार अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता प्रदान की गई है। इसलिए कोई भी अपने विचार व्यक्त कर सकता है। 
            इस लेख में मैंने यह समझने का प्रयास किया है कि कोई भी वस्तु हमें कब दिखाई देती है और कब दिखाई नहीं देती है। इस बात को मैंने विभिन्न प्रकार से जानने का प्रयास किया है, हो सकता है मेरा विचार आपको भी उचित लगे और आपकी भी समझ में आ जाये। 
               क्या आपने कभी सोचा है कि श्यामपट पर खड़िया से ही क्यों लिखते हैं कोयले से क्यों नहीं लिखते? और व्हाइट बोर्ड पर व्हाइट मार्कर से क्यों नहीं लिखते हैं। बात साफ है कि दिखाई न देगा। इसीप्रकार अलग अलग प्रकार से देखते हैं कि क्या होता है। 
            स्टरीट लाइट दिन में जलती रह जाय तो उसके जलने न जलने से कोई फर्क नहीं पड़ता है। लाइट जल रही है फिर भी उजाला दिखाई नहीं दे रहा है।उजाला तभी दिखाई देता है जब अंधेरा हो। यही लाइट रात को जलाई जाय तो चारों ओर उजाला हो जाता है और न जलने पर अंधेरा रहता है। 
            एक अन्य प्रकार से अपनी बात समझने का प्रयास करते हैं। कोई एक रंग लेते हैं और इस रंग से किसी साफ कागज को पूरा रंग देते हैं । कुछ अन्तराल के बाद इसी रंगे हुए कागज पर इसी रंग से कोई चित्र बनाते हैं । चित्र बन जाने के बाद भी हमें क्या चित्र दिखता है, शायद नहीं। हो सकता है किसी विशेष लैंस की सहायता से देखा भी जा सके क्योंकि चित्र अन्तर निहित है।
            अब तक हमने जो भी उदाहरण लिए उनसे हम इस निष्कर्ष पर पहुँचे कि किसी चीज को तभी देखा जा सकता जबकि उसमें पृथकता का गुण हो। हम वस्तुओं को उनके अलग अलग गुण, रंग और रूप के कारण ही अलग अलग देखते और पहचानते हैं। ईश्वर का तो कोई रंग रूप ही नहीं है फिर हमें दिखे तो कैसे दिखे। ईश्वर के बारे में कहा गया है- पद बिन चले सुने बिन काना, कर बिन करम करे विधि नाना। 
              सृष्टि की जितनी भी जड़ चेतन वस्तुएं हैं उन सभी में ईश्वर को व्याप्त माना गया है। गीता में श्री कृष्ण ने अर्जुन को उपदेश देते हुए कहा है कि मैं सबमें हूँ सब मुझमें हैं। मेरी इच्छा से ही सबकुछ होता है। 
            गीता के इस वाक्य से " मैं सबमें हूँ और सब मुझमें हैं।"यह बात समझ में आती है कि  आत्मा परमात्मा का ही अंश है।आदि गुरु शंकराचार्य जी ने भी अहमब्रह्मस्मि अर्थात मैं ही ब्रह्म हूँ कहा है। इन सबसे हमें अपनी बात समझने में और आसानी हो जाती है। 
             अब यह कहना अनुचित न होगा कि आत्मा और परमात्मा अलग अलग नहीं बल्कि एक ही हैं, इनमें कोई भेद नहीं है। हम यह भी समझ चुके हैं कि वस्तु हमें तभी दिखाई देगी जब उसे किसी गुण, रंग, रूप या अन्य किसी आधार पर पृथक किया जा सके। 
    जिसप्रकार उजाले में उजाले को और अंधेरे में अंधेरे को नहीं देख सकते हैं उसीतरह ईश्वर होते हुए भी हमें दिखाई नहीं देता है। 
           



            
           
    कमैंट्स