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पैसा-- प्रतिष्ठा और प्रेम PAISA-- PRATISHTHA AUR PREM # BLOG

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पैसा और प्रतिष्ठा को लेकर कई बार लोग आपस में चर्चा करने लगते हैं। पश्चिमी सभ्यता का प्रभाव कहें या …
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भोजन तथा स्वास्थ्य

By अर्जुन प्रसाद
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भोजन में  रखिए सदा, पौष्टिकता का ध्यान । गरिष्ठ भोजन नहिँ ठीक है, ऐसा तो हो ज्ञान ॥ ताजा भोजन जो करै, शुद्ध पियै अरु तोय । उसको तो फिर न कभी, रोग पेट का होय ॥ लहसुन और प्याज हो, भोजन में  भरपूर । स्वाद भी अच्छा रहे, रोग रहेँ सब दूर ॥    मुरगे की बोली से जाना, क्या तुमने संदेश ।  प्रातःकाल उठ जाने का, वह देता उपदेश ॥    प्रातःकाल ही जो उठे, और टहलने जाय । स्वास्थ्य लाभ उसको मिले, क्यों  न वह हरसाय ॥ ध्यान स्वास्थ्य का रख सदा, यह तो है अनमोल । देखभाल में तू कभी, मत कर टाल-मटोल ॥ अच्छे स्वास्थ्य के लिए,करते रहो कुछ काम । यदि आवश्यक हो तो, कर लो कुछ व्यायाम ॥ जो तू चाहे स्वास्थ्य भला, तो मेरा कहना मान । फिर तो सदा ही चाहिए, चेहरे पर मुस्कान ॥ यदि कोई चाहे कि उसका,स्वास्थ्य न होय खराब । फिर तो उसे नहिँ चाहिए,पीना कभी शराब ॥ जो चाहो अपना भला, तो मत पियो शराब । इससे तो सब ही गये, तन मन धन अरु आब ॥ प्रातःकाल जो उठहिं, सेवहिं  शुद्ध समीर । जीवन में  नहिं हो सके, उनको रोग गंभीर ॥
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Guru

By अर्जुन प्रसाद
  गुरु दीपक लेकर हाथ मेँ,  सब मेँ ढूँढा जाय । तीन लोक नौ खण्ड मेँ, गुरु से बडा न पाय ॥ तू अज्ञानी है महा, गुरु ज्ञान की खान । सब कुछ दै जो गुरु मिले, तो भी सस्ता जान ॥ जो तू चाहे की तुझे,  शीघ्र ज्ञान मिल जाय।  फिर क्या है तू सोचता, क्योँ नहिँ गुरु बनाय ॥ ईश्वर के तो रूँठते, गुरु  के पास तू जाय। जब गुरु ही रूँठ गया,  फिर है कौन सहाय ॥ मत तू ऐसा जान रे, गुरु को तुझसे बैर। पीट पीट कर भी सदा,  तेरी चाहत खैर॥ बाहर से हो अति कठोर, अन्दर कोमल होय। ऐसा गुरु ही तो सदा,  ज्ञान सिखावै तोय ॥  गुरु के गुन तौ अनंत हैँ,  जान सकै जो कोय। मुझ अज्ञानी से कहाँ,  इनका वरनन होय॥
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मित्र

By अर्जुन प्रसाद
मित्र तुम्हारा वही है, जो सुख-दुःख मेँ दे साथ । ऐसा मित्र छोडो नहीँ, फिर न आवै हाथ ॥   सुख मेँ तो सब साथ देँ, दुःख मेँ देत न कोय । जो दुःख मेँ है साथ दे, सच्चा साथी होय ॥ सामने तो मीठा बोले, पीछे रोके काज । ऐसे मित्र को छोड दो, शीघ्र ही तुम आज ॥ अति के मीठे जनन को, ऐसे ही तू जान । जैसे तन मेँ शुगर बढे, देत कलेश महान ॥ जेब मेँ जब पैसे रहेँ, मित्र बहुत ह्वै जायँ । जब ढिँग पैसे न रहेँ, मित्र पास नहिँ आयँ ॥ सबल का सब साथ देँ, निर्बल का नहिँ कोय । जो निर्बल का साथ दे, सोई महान होय ॥ सोच समझ कर मित्र बना, तुझे हो ऐसा ज्ञान । अच्छा मित्र होता सदा, सभी सुखोँ की खान ॥
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ईश्वर

By अर्जुन प्रसाद
जग का ईश्वर एक है, सब प्राणिन मेँ व्याप्त। जन अपने अज्ञान वश, करेँ न उसको प्राप्त॥ ईश्वर का सच्चा भगत, जग मेँ वही कहाय। सकल जगत के प्राणिन पै, जो निज प्रेम दर्शाय ॥   ईश्वर की पूजा क्या, इसे न समझे कोय। जो मेहनत से काम करे, वही तो पूजा होय॥   ईश्वर के दर्शन करे, दीनन मेँ तू जाय। मानव सेवा मेँ सदा, ईश्वर को है पाय॥    अन्तःकरण को शुद्ध कर, ईश्वर का धर ध्यान। इससे सदा प्रसन्न रहेँ, तुझसे हैँ भगवान॥  हे ईश्वर मैँ तो सदा, दाता जानूँ तोय। जिसमेँ तो कल्यान हो, सो तू देना मोय॥ मैँ का तुझसे माँग लूँ, माँगन मेँ तो फेर । ज्ञान बुद्धि देना मुझे, मत कर देना देर ॥ अति सूक्ष्म व्यापक अति, वर्णन किया न जाय । जो जाने कह न सके, कहे सो जान न पाय ॥
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ज्ञान

By अर्जुन प्रसाद
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Photo by  Victor  from  Pexels ज्ञानी सब संसार है, अज्ञानी 'प्रसाद' | जो कुछ नहि है जानता , जिसको कुछ नहि याद|| सभी को होना चाहिए , ऐसा सच्चा ज्ञान | अतिथि मात पिता अरू गुरु, सभी देवता समान || काम क्रोध मद लोभ मोह , इनसे रह होशियार | जो तू चाहे जगत मे , अपना कुछ उद्धार || दीमक से भी लीजिए,थोड़ा सा कुछ ज्ञान | लगकर जो तुम काम करो , हो जाय काम महान || ज्ञानवान मानव की है, कुछ ऐसी पहचान | झुक जाता है वह ज्ञान से, फलदार वृक्ष समान|| झूठे हैं बन्धन सभी, कहते ज्ञानी लोग | अन्तर में इनके छिपे, कहे जा सकें भोग|| अज्ञानी मत कर कभी, देह का अभिमान |  इसको तू सदा ही, मिट्टी का ढेला जान || ज्ञानी तो बस एक है, जिसे जगत का ज्ञान | अज्ञानी वे सकल हैं, जो करे सत्य से पलान || मद में मस्त शरीर के, इतना नहिं तू डोल  | पता नहिं कब उतर जाये, यही ढोल की पोल || मिथ्या जग को क्यों रहा, सच्चा तू रे मान | इसे तो ऐसे देखिये, झूठा सपना जान ||  बिन ठोकर आवै अकल, सो तौ सम्भव नाय | जैसे बिन गोता लगे, तैरना सीख न पाया || रे अज्ञानी जगत में, अपना कोई नाय  |  अपना अपना करे...
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बडा़ आदमी # BARAA AADAMEE # BLOG

By अर्जुन प्रसाद
 अक्सर आपने लोगों को कहते सुना होगा कि वो तो बहुत बड़ा आदमी है। बड़ा बनने की चाह हर किसी में होती है और इंसान बड़ा बनने की कोशिश भी करता है भले ही वो बड़ा न बन पाए यह अलग बात है।आज के इस लेख में यह जानने का प्रयास करेंगे कि आखिर बड़ा होता कौन है ? लोग किसे बड़ा आदमी कहते हैं?           बड़ा आदमी बनने के लिए व्यक्ति को महत्वाकांक्षी होना जरूरी है। कहावत भी है - जहाँ चाह है वहाँ राह है। कोई भी आदमी किसी काम को करने का दृढ़ निश्चय कर ले तो वह उस काम में एक न एक दिन सफलता प्राप्त कर ही लेता है। व्यक्ति का मनोबल भी बड़ा आदमी बनने में उसका सहयोग करता है। जो लोग काम शुरू करने से पहले ही मन उदास कर लेते हैं और बेमन से काम शुरू करते हैं उन्हें बड़ा आदमी बनने का सपना नही ं देखना चाहिए।             कोई भी आदमी यूँ ही बड़ा नहीं बन जाता है। उसे जीवन में बहुत संघर्ष करना पड़ता है। जो भी जीवन में आई मुसीबतों का सामना करता हुआ आगे बढ़ता रहता है और सदा अडिग होकर अपने लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए प्रयासरत रहता है वह  निश्चय ...
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फुलवारी - FULWARI

By अर्जुन प्रसाद
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                                                                                   प्रातः काल जब मैं उठता,                   आंँगन मे दिखती फुलवारी  |   खुद तो बैठी मुझे घुमाती,                   आंँगन की ऐसी फुलवारी|   मैं नहाऊँ तो गोसल जाऊँ,                    वर्षा में नहाती फुलवारी |        नहाय धोयकर, सज संवर कर,                    आँगन में बैठी फुलवारी |        जब-जब हँसती और मुस्कराती,                    मुझको खुश करती फुलवारी | ...
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स्वागत है !

By अर्जुन प्रसाद
प्रसाद कविता संग्रह में आप सभी का हार्दिक स्वागत है |
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विनम्रता और हमारा जीवन VINAMRATA AUR HAMAARA JEEVAN

By अर्जुन प्रसाद
मनुष्य में विनम्रता का भाव जन्मजात नहीं होता है। बच्चा जब छोटा होता है तो हँसना, रोना, खाना- पीना और सोना इत्यादि उसकी स्वभाविक क्रियाएँ होती है। जैसे- जैसे बच्चा बड़ा होता है वैसे- वैसे अन्य लोगों के सम्पर्क में रहकर अच्छी बुरी हर प्रकार की बातें सीखता है। समाज में रहकर सीखने की क्रिया को समाजीकरण कहा जाता है। समाजीकरण की क्रिया मनुष्य में जीवन भर चलती रहती है।           बालक में मानवीय गुणों यथा- प्रेम, सेवा, सहयोग, विनम्रता आदि का विकास समाज में रहकर ही होता है। अरस्तू ने कहा है "Man is a social animal." इस वाक्य में से यदि social शब्द को हटा दिया जाए तो Man is a animal. शेष रह जाता है। वास्तव में देखा जाए , यदि कोई मनुष्य दूसरों के सुख दुःख में साथ न देकर केवल अपने ही बारे में सोचता है तो उसका यह व्यवहार पशुवत व्यवहार ही कहा जाएगा।            बालक हो अथवा बड़ा उसमें गुण या अवगुण का विकास धीरे धीरे होता है। जो जैसे लोगो ं के साथ रहता है उनमें रहकर ही अच्छी बुरी बातें सीखता है। उसे जो लोग आकर्षित करते हैं उनके साथ रहना प...
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बेरोजगारी

By अर्जुन प्रसाद
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  जब कोई सक्षम व्यक्ति  इच्छा एवं रूचि अनुसार  योग्यतानुसार  प्रचलित पारश्रमिक दर पर  कार्य करने को  हो तत्पर  किन्तु  मिल न पाये  उसको कोई रोजगार  कहलायेगा बेरोजगार |  बेरोजगार व्यक्ति  कैसे करेगा जीवन यापन  समस्या है  अर्थव्यवस्था  का  कैसे होगा विकास  बढ़ेगी निर्धनता  होगा निम्न जीवन स्तर  न हो पायेंगी पूरी  आवश्यकताएँ |  बेरोजगारी  दूर करने हेतु  किये जायें प्रयास  जनसंख्या वृद्धि पर लगायें  रोक  तकनिकी शिक्षा का हो विकास  रोजगार परक  शिक्षा हो  श्रम को महत्त्व दें  निष्क्रियता दूर भगायें  इस प्रकार  बढ़ेंगें रोजगार के अवसर  बढ़ेगी प्रति व्यक्ति आय  बढ़ेगीं सुख सुविधाएँ  होगा उच्च जीवन स्तर  अर्थ व्यवस्था  का होगा विकास  भारत होगा एक विकसित राष्ट्र | 
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