मतलब की दुनिया # MATALAB KI DUNIYA # BLOG

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    'दुनिया मतलब की है।'इस कहावत ने मतलब शब्द को इतना बदनाम कर दिया है कि मतलब के बारे कुछ लिखने से पहले सोचना पड़ रहा है कि कहीं लोग मुझे मतलबी न समझ बैठें। सोचा जाय तो हर इंसान मतलबी होता है। किसी को मतलबी कहने पर न जाने उसे गाली क्यों लगती है। हो सकता है हम सब मतलब का भी गलत मतलब निकाल लिए हों। 
             वैसे तो हर किसी बात का कोई न कोई मतलब होता है और बिना मतलब की कोई बात नहीं होती है। जब हम किसी संदर्भ से हटकर बात करने लगते हैं तो वो बेमतलब की बात हो जाती है। ऐसी बात को सुनने वाला कोई महत्व नहीं देता है। वही बात ठीक लगती है जो कहने वाले और सुनने वाले दोनों के मतलब की हो। केवल अपने मतलब की बात करने वाले को मतलबी कहा जाता है। 
           जब हम किसी से बात करते हैं और वो हमारी बात का अर्थ नहीं समझ पाता है तब हम मतलब कहकर दूसरे सरल शब्दों में अपनी बात समझाने का प्रयास करते हैं, ऐसा अक्सर होता है। कुछ लोगों की तो आदत ही ऐसी हो जाती है कि वे अपनी हर बात में मतलब जोड़ देते हैं। जो इंसान बिना मतलब के अपनी बात नहीं कह पा रहा है उसे आप क्या कहेंगे? मेरे विचार से ऐसे व्यक्ति मतलबी नहीं है। 
              मतलब की बात करना और हर बात का मतलब समझना हर कोई चाहता है। किन्तु कभी कभी ऐसा भी होता है कि हम कोई बात कह रहे होते हैं और सुनने वाला उसका कोई दूसरा अर्थ समझ लेता है। ऐसे में बिना मतलब के बात बढ़ जाती है और झगड़ा हो जाता है जबकि उसका कोई मतलब नहीं होता है। 
              कभी कभार ऐसा भी होता है कि हम किसी से अच्छी बात कर रहे होते हैं और उसे हमारी अच्छी बात भी बुरी लगती है ऐसा अक्सर तब होता है जब दोनों के विचार नहीं मिलते हैं और हमारी सही बात भी उसे बेमतलब की बात लगती है। कोई भी बात जब किसी के हित में हो तो उसे मतलब की बात दिखाई देती है और उसके हित में नहीं हो तो उसे बेमतलब की बात लगती है। 
              बात मतलब की हो तभी ठीक लगती है। कहने सुनने में भी मजा आता है। कहने को तो लोग गपशप करने को बेमतलब की बात कह देते हैं। किन्तु जब गप मारने वाला और उसकी हांँ में हाँ मिलाने वाला दोनों को मजा आ रहा हो, उनका मूड फ्रेश हो रहा हो तो बात बेमतलब की कहाँ रही। गप मारने वाले का और सुनने वाले दोनों का मनोरंजन हो गया। आज के इस तनाव भरे जीवन में मनोरंजन स्वस्थ रहने के लिए बहुत जरूरी है। 
             देखा जाये तो दोस्ती और दुश्मनी का भी कोई न कोई मतलब अवश्य होता है। पहले हम दोस्ती के कारणों को जानने का प्रयास करते हैं। अक्सर ऐसा देखने में आया है कि जब दो लोगों के विचार अथवा उनकी समस्याएं एक जैसी हो ं तो उनकी दोस्ती हो जाती है। श्रीराम और सुग्रीव की मित्रता इसका एक सुंदर उदाहरण है। 
              कोई भी अकारण किसी का शत्रु नहीं बन जाता है। इसके पीछे कोई न कोई कारण अवश्य होता है। जब दो लोगों के हित आपस में टकराने  लगते हैं तो उनमें एक दूसरे के प्रति ईर्ष्या उत्पन्न हो जाती है और धीरे धीरे वे एक दूसरे के शत्रु बन जाते हैं। 
              व्यक्ति जब भी कोई काम करता है तो उसके पीछे कोई कारण अवश्य होता है। व्यक्ति उस कारण (मतलब) से प्रेरित होकर ही काम करता है। मुख्य बात यह है कि व्यक्ति द्वारा किए गए कार्य चाहे जिस रूप में क्यों न हो, उसका हित अवश्य होता है। ऐसे में दुनिया मतलब की है कहने सुनने में भले ही ठीक न लगता हो लेकिन सत्य है। 


               
              
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