सुन्दरता व्यक्ति के चरित्र का एक आवश्यक गुण होता है। सुन्दर व्यक्ति हर किसी का मन मोह लेता है। सुन्दरता से कौन प्रेम नहीं करता है इसीलिए हर कोई सुन्दर बनना चाहता है। अब प्रश्न उठता है कि सुन्दर कैसे बना जाय, इसी विषय के विभिन्न पहलुओं पर विस्तार से चर्चा करने का मेरा विचार है। सुन्दरता दो प्रकार की होती है- पहली वाह्य सुन्दरता और दूसरी आन्तरिक सुन्दरता। वाह्य सुन्दरता से मेरा अभिप्राय शारीरिक सुन्दरता से तथा आन्तरिक सुन्दरता से मेरा तात्पर्य आचरण की सुन्दरता से है। अब इन दोनों प्रकार की सुन्दरताओं को समझने और उनको प्राप्त करके सुन्दर बनने का प्रयास करते हैं।
पहले हम शारीरिक सुन्दरता की बात करते हैं। वैसे तो शारीरिक सुन्दरता जन्मजात होती है, सुन्दर माता-पिता के बच्चे भी सुन्दर ही होते हैं। शारीरिक सुन्दरता प्राप्त करने के लिए हमें बहुत अधिक प्रयास नहीं करना पड़ता है क्योंकि बच्चे का रंग-रूप अधिक -तर अपने माता- पिता जैसा ही होता है। शरीर के रंग में तो हम बहुत अधिक परिवर्तन नहीं ला सकते हैं, हाँ इतना अवश्य है कि स्वास्थ्य के प्रति सजग रहें तो शरीर के रंग को भी बेहतर किया जा सकता है।
शरीर को सुन्दर बनाने के लिए हमें अपने आहार- विहार पर विशेष ध्यान देना होगा। संतुलित और पौष्टिक भोजन का हमारी शारीरिक सुन्दरता से सीधा सम्बन्ध होता है। भोजन सदा ही हमारी शारीरिक आवश्यकता के अनुसार ही होना चाहिए। आवश्यकता से अधिक भोजन करने से शरीर का मोटापा बढ़ जाता है, शरीर सुडौल नहीं रहता है। मोटापा बढ़ने से अनेक प्रकार के रोग पनपने लगते हैं और शरीर भी देखने में सुन्दर नहीं लगता है।
आजकल अधिकतर लोगों की मानसिकता कुछ ऐसी हो गयी है कि वे अपने निजी काम जिन्हें वो आसानी से कर भी सकते हैं उन्हें भी दूसरों से करवाने में अपना बड़प्पन समझते हैं। ऐसे लोगों के शरीर को सुन्दर रखने के लिए व्यायाम अति आवश्यक हो जाता है। ऐसे लोगों को अपनी उम्र और अपनी शारीरिक क्षमता के अनुरूप व्यायाम करते रहना चाहिए। टहलना एक अच्छा व्यायाम है। इसे पुरुष हो या महिला दोनों ही आसानी से कर सकते हैं और स्वस्थ और सुन्दर बन सकते हैं।
योगा भी शरीर को स्वस्थ और सुन्दर बनाने का एक आसान उपाय है। योगा करने से व्यक्ति का मन और मस्तिष्क दोनों स्वस्थ होते हैं। मनुष्य के शरीर का संचालक उसका मस्तिष्क ही होता है। मन स्वस्थ तो तन स्वस्थ। मनुष्य जब शारीरिक और मानसिक रूप से स्वस्थ होता है तो सुन्दर भी दिखता है। योगा सुबह को खाली पेट संध्या के समय खाना खाने के पहले करना चाहिए। योगा करते समय हमारा ध्यान अन्यत्र कहीं नहीं होना चाहिए। योगा को घर में ही किसी खुले स्थान पर कोई आसान बिछाकर उसपर आसानी से किया जा सकता है।
चेहरे को सुन्दर बनाने के लिए बाजार में विभिन्न प्रकार के क्रीम, पाउडर और लोशन उपलब्ध हैं। इनका नामोल्लेख किया जाए तो एक लम्बी सूची बन जाएगी। इनका उपयोग करने से शरीर इनका आदी हो जाता है यदि इनको न लगाया जाये तो चेहरा भद्दा दिखता है । इनको लगाने से चेहरा कुछ देर के लिए सुन्दर दिखने लगता है। कुछ घरेलू उपायों से भी चेहरे की सुन्दरता को बढ़ाया जा सकता है। चेहरे की सुन्दरता बढ़ाने के लिए ऐलोवेरा, हल्दी और कच्चे दूध की मलाई का भी उपयोग किया जा सकता है। इनका कोई साइड इफेक्ट भी नहीं है।
सुन्दरता का दूसरा और महत्वपूर्ण रूप है- आन्तरिक सुन्दरता, आचरण की सुन्दरता या मन की सुन्दरता। तन से कोई भले ही सुन्दर दिखाई देता हो लेकिन यदि उसका आचरण और व्यवहार सुन्दर नहीं है तो उसकी सुन्दरता पर प्रश्न चिह्न लग जाता है। ऐसे लोगों की सुन्दरता अधूरी सुन्दरता है। आचरण की सुन्दरता एक ऐसी सुन्दरता है जिसका लाभ तुलनात्मक दृष्टि से कम सुन्दर दिखने वाला भी ले सकता है। ऐसा व्यक्ति अपने आचरण से लोगों को प्रभावित कर लोगों के दिल में अपनी जगह बना लेता है, इस प्रकार लोग उसके आचरण और व्यवहार से खुश रहते हैं और सदा उसकी प्रशंसा करते हैं।
हँसमुख चेहरा और मधुर वाणी भी व्यक्ति की सुन्दरता में चार चाँद लगा देती है। कोयल और कौआ का रंग- रूप एक सा ही होता है। कोयल अपनी मधुर वाणी के कारण ही सबकी प्रिय बन जाती है। कौए का कर्कश स्वर किसी को भी अच्छा नहीं लगता है। हमें चाहिए कि हम जब भी किसी से बात करें तो हमारा चेहरा खिल उठे जिससे बात करने वाले को यह अहसास हो कि मुझसे मिलकर इन्हें प्रसन्नता हुई है। इसप्रकार का आपका व्यवहार किसको अच्छा नहीं लगेगा। अर्थात सभी को अच्छा लगेगा। कहावत भी है आदमी गुड़ न दे गुड़ जैसी बात तो करे।
मिलजुल कर रहना और सहयोग की भावना भी एक अच्छे इंसान की पहचान है। कोई भी व्यक्ति इस बात का दावा नहीं कर सकता है कि उसे किसी अन्य व्यक्ति की आवश्यकता नहीं है। सबको किसी न किसी रूप में एक दूसरे के सहयोग की आवश्यकता पड़ती ही है। समाज में एक दूसरे के दुख सुख में सम्मिलित होना चाहिए। सबके साथ मिलकर चलना इसलिए भी जरूरी होता है पता नही कब कौन किसके काम आ जाए। जो लोग समाज में मिलजुल कर नहीं चलते हैं वे घमण्डी कहलाते हैं। ऐसे लोग किसी के भी प्रिय नहीं होते हैं। कबीर दास जी ने भी कहा है ऐसी बानी बोलिए मन का आपा खोय। हमें भला बनने के लिए घमण्ड का त्याग करना ही पड़ेगा।
'सत्यम् शिवम् सुन्दरम्' सूक्ति को कौन नहीं जानता है। जहाँ सुन्दरता की बात चल रही हो वहाँ सत्य को भला कैसे भुलाया जा सकता है। सत्य विचार ही सदा कल्याणकारी होता है। जो कल्याणकारी है वही सुन्दर है। इस प्रकार जिन बातों को ऊपर बताया गया है इनको अपने जीवन में अपनाकर कोई भी इंसान सुन्दर बन सकता है इसमें कोई संदेह नहीं है।