मेरी नानी का घर गाँव में है। गाँव का नाम सुनते ही एक बार फिर आपके मन में गाँव का पुराना दृश्य जरूर आया होगा। गाँव में सुविधाओं का अभाव, गंदगी के ढेर और कच्चे मकान होना ये सब आम बात थीं। शहर के लोग तो गाँव का नाम सुनते ही डर जाते थे। गाँव में जाना और वहाँ से रिश्ता करना उन्हें कदापि मंजूर नहीं था। इतना सबकुछ होते हुए भी शहर के लोग गाँव की कुछ बातों की प्रशंसा भी करते थे जैसे- बिना मिलावट का दूध-घी ,ताजा फल और सब्जियां, गन्ने का ताजा रस और गरम -गरम ताजा गुण इत्यादि।
गाँव के लोगों का मुख्य व्यवसाय कृषि होता है। मेरे नाना जी भी खेती करते हैं।। वो अपने खतों में मुख्य रूप से धान, गेहूँ ,मक्का, चना , मूंगफली और गन्ना की फसलें करते हैं। मैं जब भी नानी के घर जाता तो अपने मामाजी के साथ खेतों पर घूमने अवश्य जाता था। खेतों में लहलहाती फसलों को देखकर मेरे आनंद का कोई ठिकाना नहीं रहता था। चना और मूंगफली के गरम- गरम होले मुझे बहुत अच्छे लगते थे। नानाजी गन्ने से गुड़ भी बनाते थे। मैं जब भी जाड़े की छुट्टियों में नानाजी के यहाँ जाता तो गरम गरम गुड़ खाता था।
मेरे नानाजी के यहाँ आम का बाग भी है। बाग में अनेक प्रकार के आम के पेड़ हैं। इनमें अधिकतर पेड़ ऐसे हैं जिनके पकने योग्य आमों को तोड़कर उनको पाल लगाकर पका लिया जाता है। बाग में एक पुराना आम का पेड़ ऐसा भी है जिसके फलों का पाल नहीं लगाया जाता है। इसके आम चूने के बाद ही चूसे जाते हैं। इन्हें टपका कहते हैं। नानाजी सुबह तड़के टपका बीन लाती थी और इनको धोकर एक डलिया में रख देती थी। हम सब एक साथ बैठकर टपका चूसते थे और बहस होती थी कि कौन अधिक टपका चूसता है। बहुत आनंद आता था।
खेती के साथ साथ मेरी नानी के यहाँ पशुपालन भी होता था। उनके यहाँ गाय, बैल और एक घोड़ा भी था। नानीजी गाय की बहुत सेवा करती थी। घर में जब भी खाना बनता तो पहली रोटी अलग निकाल कर गाय के लिए रख दी जाती थी। गाय का दूध दूहनाऔर दूध से जुड़े अन्य काम जैसे - दूध गरम करना, दही बनाना, घी बनाना आदि सभी काम नानी ही करती थी ंं। खिलाने- पिलाने में नानाजी मेरा बहुत ध्यान रखती थी ं ।
मेरे नानाजी को घुड़सवारी का बहुत शौक था। मेरे नाना जब भी कहीं जाते तो घोड़े पर बैठकर ही जाते थे। एक दिन उन्हें कहीं जाना था। उन्होंने अस्तबल से घोड़ा बाहर निकाला और उसकी पीठ पर चार जामा कसा। मैंने नानाजी से घोड़े पर बैठने की इच्छा व्यक्त की। नानाजी ने उठाकर मुझे घोड़े की पीठ पर बैठा दिया। मैंने पूछा, नानाजी घोड़ा कैसे हांका जाता है। नानाजी ने मुझे बताया कि पहले घोड़े की पीठ पर ठीक से बैठते हैं तथा घोड़े की लगाम को हल्का झटका देते हैं और साथ ही दोनों पैरों को हिलाते हैं। इतने इशारे को कोई घोड़ा नहीं समझता है तो उसे चाबुक भी मारते हैं । मैं छोटा ही था और मुझे डर भी लग रहा था अत: नानाजी ने मुझे पकड़े पकड़े ही थोड़ी दूर घोड़ा चलाया और फिर मुझे घोड़े से नीचे उतार दिया।
मेरी नानी के घर में नाना - नानी, मामा - मामी, मौसी और ममेरे भाई- बहन हैं । ये सब आपस में मिलजुल कर रहते हैं । मैं जब भी नानी के घर जाता था तो घर के दरवाजे पर पहुँचते ही नानी से मिलने के लिए दौड़ लगा देता था। नानी जहाँ भी मिलती ं मैं उनके पैर छूता। नानी खुश होकर मुझे अपनी गोद में उठा लेतीं, मेरे सिर पर हाथ फेरती और मेरे हाथ मुँह को चूमती। मेरे मामा- मामी भी मेरे मम्मी -पापा से बातें करते और घर का हाल पूछते ।
नानी के घर की बात चल रही हो और मौसी का नाम न आये ऐसा हो ही नहीं सकता । नानी के बाद मौसी ही थी जो मेरा और मेरे मम्मी- पापा का बहुत ख्याल रखती थी। मेरे मम्मी -पापा भी मेरी मौसी को बहुत अधिक प्यार करते थे । मेरी पूरी देखभाल मौसी ही करती। मुझे नहलाना,कपड़े धुलना और खाना खिलाना ये सब काम मौसी ही करती थी। छुट्टियों में स्कूल से मिला होमवर्क भी मौसी ही पूरा करवाती थी। जब हम लोग अपने घर पर होते थे , मम्मी का स्वास्थ्य खराब होता या घरेलू काम का बहुत अधिक दबाव होता तो मम्मी अक्सर मौसी को ही बुला लिया करती थी ंं।
मैं जब नानी के घर पर अपने ममेरे भाई बहन के साथ खेलता - खाता तो कभी कभी किसी चीज को लेकर आपस में झगड़ा भी हो जाता था और काफी गुत्थमगुत्था हो जाती थी। मामला जब आपस में नहीं सुलझता तो मैं अपनी शिकायत लेकर नानी के पास जाता, नानी दोनों की बात सुनतीं और दोनों को समझा बुझाकर किसी तरह मामले को शांत कर देती थीं। ये कोई नयी घटना नहीं थी, आये दिन अक्सर ऐसी घटनाएं होती रहती थीं । गाँव भी अब पहले जैसे नहीं रहे हैं । सरकार द्वारा चलाई जा रही विभिन्न योजनाओं ने गावों की कायाकल्प कर दी है । नानी के गाँव में भी घर व सड़कें अब पक्की हो गई हैं। स्वच्छता अभियान के अंतर्गत घर घर इज़्ज़त घर (शौचालय) बन गए हैं। अब किसी को शौच के लिए घर से बाहर नहीं जाना पड़ता है। गाँव में पेयजल के लिए सरकार व्यवस्था कर रही है। जिन घरों में रसोई गैस नहीं थी, उन्हें भी रसोई गैस मुहैया करा दी गई है । जिन घरों में बिजली नहीं थी उनके घरों में बिजली के कनेक्शन सरकार द्वारा करा दिए गए हैं। अब नानी के घर में भी सभी सुविधाएं उपलब्ध हैं।
नानी का घर यानी मौज मस्ती का घर । ऐसा घर जिसमें कोई रोक टोक नहीं। जो चाहो खाओ, जहाँ चाहो खेलो। कोई बालक किसी के यहाँ मनमानी करता है तो लोग यही कहकर उसे डाँटते हैं कि क्या तुमने 'नानी का घर' समझ लिया है। वास्तव में नानी के घर की कहावत सत्य ही है क्योंकि नानी के घर जैसा आनन्द अन्यत्र कहीं नहीं है।