सत्य की खोज / SATYA KI KHOJ / BLOG

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    आज मैं जिस बिषय पर लिखने जा रहा हूँ उसका कोई आदि और अन्त नहीं है.जब किसी वस्तु का कोई सिर पैर ही नहीं हो तो अपनी बात कहाँ से शुरू की जाये कुछ समझ नहीं आ रहा है फिर भी अपनी बात तो कहनी ही है. 
            जब हम कोई नयी खोज करते हैं तो उसके लिए हमें अनेक बार प्रयास करना पड़ता है क्योंकि कि कोई भी सफलता हमें आसानी से प्राप्त नहीं होती है। इसका तात्पर्य यह कदापि नहीं होता है कि हम प्रयास करना बंद कर दें और हाथ पर हाथ रखकर बैठ जाये ं। 
            हम अपने काम में यदि असफल भी जाते हैं तो भी हमें यह सीख अवश्य मिलती है कि हमसे कहीं चूक हुई है और हम दूसरी तरह अपना प्रयास करते हैं। हमें अपने प्रयास से कुछ न कुछ सीखने को अवश्य मिलता है। हमारा प्रत्येक प्रयास हमें सफलता के निकट ले जाता है, इसीलिए असफलता को सफलता तक पहुँचने की सीढ़ी कहा जाता है। मानव जीवन के इतिहास में जितनी भी खोजें हुई हैं वे सब लम्बे संघर्ष और प्यास का परिणाम हैं। 
           

    विज्ञान इस बात को मानता है कि कोई भी वस्तु न तो नये सिरे से उत्पन्न की जा सकती है और न उसे पूरी तरह से नष्ट किया जा सकता है. इसका तात्पर्य यह हुआ कि जिस वस्तु का निर्माण किया गया है वो वस्तु इससे पहले किसी पदार्थ के रूप में विद्यमान रही होगी. इसीप्रकार जब हम किसी वस्तु को नष्ट करते हैं तो भी वो वस्तु नष्ट नहीं होती है केवल उसका रूप परिवर्तित हो जाता है. यही प्रकिया आगे भी चलती रहती है.
    अब प्रश्न उठता है कि वस्तु या पदार्थ के किस रूप को मूलरूप माना जाये और उसे सत्य समझा जाये क्यों कि सत्य सत्य ही होता है और उसमें परिवर्तन नहीं होता है और जिसमें परिवर्तन होता है वो सत्य नहीं है.
     अब कुछ ऐसे विषयों पर चर्चा करते हैं जिन पर सत्य जानने का अब तक प्रयास किया गया है.
    सर्वप्रथम लोगों का विचार था कि पृथ्वी सपाट या चपटी है. तत्पश्चात मेगलन ने अपनी समुद्री यात्रा में अपने जहाज को निरन्तर एक ही  दिशा में चलाया उसका जहाज चलते चलते उसी जगह पहुँच गया जहाँ से उसने अपनी यात्रा प्रारंभ की थी. उसनें यह सिद्ध कर दिया कि पृथ्वी चपटी नहीं बल्कि गोल है.
    बात यहाँ पर भी पूरी नहीं हुई.
    पृथ्वी के आकार को लेकर बात और आगे बढ़ी. ऐसा कहा गया कि पृथ्वी गेंद की तरह गोल नहीं है. पृथ्वी का आकार संतरे जैसा है और इसके दोनों सिरे चपटे हैं. वर्तमान में पृथ्वी के आकार को अण्डाकार माना जा रहा है.-------
    इसीप्रकार प्राचीन ग्रंथों में ऐसा उल्लेख मिलता है कि लोग पृथ्वी को गतिमान नहीं मानते थे. उनका विचार था कि पृथ्वी स्थिर है सूर्य घूमता है.आज हम सभी यह मानते हैं कि पृथ्वी सूर्य के चारों ओर चक्कर काटने के साथ साथ अपनी धुरी या अक्ष पर भी घूमती है.-----

    कुछ वर्ष पहले  ग्रहों की संख्या नौ मानते थे.आज यह संख्या कम हो गई है.अब आठ ही ग्रह माने जा रहे हैं.------
    आप कभी खुले मैदान में जा कर देखना.  आपको बहुत दूर देखने पर एक ऐसा स्थान दिखाई देगा जहाँ पर पृथ्वी और आकाश मिले दिखाई देंगे. क्या वास्तव में ऐसा है. मैं क्षितिज को ढूंढ रहा हूँ अभी तक मिला नहीं है प्रयासरत हूँ सत्य की खोज में-------
    जगत मिथ्या है. जगत में जितने भी भौतिक पदार्थ और वस्तुएं हैं ,सभी नाश्वान हैं अतः सभी असत्य हैं. हम भ्रमवश इनको सत्य मानते हैं. इनमें किसी का भी मौलिक स्वरूप नहीं है. सत्य भी केवल तब सत्य है कि हम उसे सत्य मान लें. सत्य आज भी खोज का विषय है और भविष्य में भी खोज का विषय रहेगा.
     

    कमैंट्स