आस्था या विश्वास का मानव जीवन में बहुत अधिक महत्व होता है. इससे व्यक्ति के अन्दर सकारात्मक ऊर्जा उत्पन्न होती है जिससे व्यक्ति को अपने कार्य में सफलता प्राप्त होने के अवसर अधिक रहते हैं.इसका मुख्य कारण यह होता है कि व्यक्ति जिसमें आस्था रखता है उससे व्यक्ति का वैचारिक तारतम्य जुड़ जाने से व्यक्ति की सकारात्मक ऊर्जा में वृद्धि हो जाती है और व्यक्ति को अपने लक्ष्य को प्राप्त करने में आसानी हो जाती है.
इस तथ्य को समझने के लिए एक छोटे से उदाहरण का सहारा लेना अनुचित न होगा.
माना कि एक शिक्षक अपनी कक्षा में सभी विद्यार्थियों को समान रूप से पढ़ाता है. कुछ विद्यार्थी जिन्हें शिक्षक में आस्था है वे शिक्षक की बातें ध्यान पूर्वक सुनते हैं उन्हें पाठ आसानी से समझ में आ जाता है. इसके विपरीत जिन विद्यार्थियों को शिक्षक में आस्था नहीं है वे आपस बातें करते रहते हैं शिक्षक द्वारा पढ़ाये गए पाठ को ध्यानपूर्वक नहीं सुनते हैं. बाद में कहते हैं सरजी आपने जो पढ़ाया हमारी समझ में नहीं आया. पाठ समझ में न आने का कारण मेरे विचार से शिक्षक और विद्यार्थियों के बीच ठीक से तारतम्य स्थापित न होना रहा.
ऐसा देखने में आया है कि मनुष्य की पहुँच हर जगह नहीं है. अनेक स्थानों पर उसे आस्था का ही सहारा लेना पड़ता है. कहावत है कि डूबते को तिनके का सहारा बहुत होता है. जब इंसान किंकर्तव्यविमूढ़ हो जाता है और उसे चारों ओर घोर अंधकार के अतिरिक्त कुछ दिखाई नहीं देता है ऐसी स्थिति में आस्था ही एक मात्र उसका सहारा होती है.
मनुष्य जब किसी में आस्था रखता है तब उसके मन में सदा यह विचार बना रहता है कि मेरे दुख के समय में मेरा साथ देने वाला है इसलिए वो अपने को कभी अकेला महसूस नहीं करता है. आस्थावान व्यक्ति में अपने से दोगुना ताकत तो हमेशा रहती ही है यदि उसकी आस्था अधिक प्रबल है तो बिषम परिस्थितियों में उसकी ताकत और अधिक हो जाती है. ऐसे समय में भी वो अपने को कमजोर महसूस नहीं करता है.
आज के समय में मनुष्य बहुत अधिक तनावग्रस्त रहता है. वर्तमान के चकाचौंध भरे जीवन में मनुष्य की सुखशांति को अनन्त आवश्यकताओं का दानव निगल रहा है. ऐसी परिस्थितियों में मनुष्य के जीवन में संतुलन की आवश्यकता है क्योंकि असंतुलन की स्थिति ही दुख की स्थिति होती है. आस्था मनुष्य के जीवन में संतुलन स्थापित करने में मदद करती है.
आस्थावान व्यक्ति कभी दुखी नहीं रहता है. वो सदा मस्त रहता है. ईश्वर में आस्था रखने वाला व्यक्ति अपने किसी भी कार्य के होने या न होने का श्रेय सदा ईश्वर को देता है. अत: कार्य में सफलता प्राप्त होने पर वो गौरान्वित नहीं होता है और असफल होने पर उसे दुख नहीं होता है.
भवसागर जिसमें हर प्रकार की लहरों का उत्पन्न होना निश्चित है को आस्था रूपी नाव के बिना पार करना असंभव नहीं तो मुश्किल अवश्य है.