भारत एक कृषि प्रधान देश है. यहाँ की लगभग सत्तर प्रतिशत जनसंख्या कृषि कार्य करती है.कृषि करने के लिए जमीन की आवश्यकता होती है. देश की जनसंख्या में निरंतर वृद्धि के कारण खेतों का आकार दिन प्रतिदिन छोटा होता जा रहा है. इसके अतिरिक्त बढ़ती जनसंख्या के लिए अन्य सुविधाओं हेतु भी भूमि का उपयोग किया जा रहा है इस कारण से कृषि योग्य भूमि दिनों दिन घटती जा रही है. इनमें प्रमुख कारण निम्नलिखित हैं.
बेरोजगारी वर्तमान समय की एक प्रमुख समस्या है. कृषि कार्य में लगे लोगों को भी वर्ष भर कार्य नहीं मिलता है. कृषि कार्य में कुछ लोग ऐसे भी लगे रहते कि जिनको हटा देने से भी उत्पादन पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है. इस प्रकार के कार्य में लगे लोग भी बेरोजगार कहलाते हैं, इस प्रकार की बेरोजगारी प्रछन्न बेेेरोजगारी कहलाती है.
बेरोजगारी का एक अन्य प्रकार शिक्षित एवं प्रशिक्षित युवक एवं युवतियों का है.इन युवाओं के लिए भी रोजगार देने का दायित्व भी सरकार का ही बनता है. सरकार द्वारा जो रोजगार की व्यवस्था की जाती है वो बेरोजगारों की तुलना में काफी कम होती है.
बेरोजगारी केवल सरकारी नौकरियों से दूर नहीं हो पा रही है, अत: रोजगार के सृजन हेतु नये उद्योग- धंधे भी स्थापित करने पड़ रहे हैं. इन कारखानों के निर्माण में काफी जमीन चली जाती है. इस कारण कृषि योग्य भूमि निरंतर घटती जा रही है.
बढ़ती जनसंख्या के रहने के लिए कुछ नये आवासों की भी आवश्यकता होती है. इन आवासों के निर्माण के लिए भी जमीन चाहिए, इस प्रकार गृह निर्माण में भूमि का कुछ भाग काम में आ जाता है.आजकल एकाकी परिवार का चलन बढ़ गया है क्योंकि प्रत्येक परिवार स्वतंत्र रहना चाहता है इसलिए बहुत सी भूमि मकान बनाने में ही काम में आ जाती है.
इसके अलावा शिक्षा तथा स्वास्थ्य भी हमारी आवश्यक आवश्यकताएं हैं, इनको पूरा करने के लिए विद्यालयों एवं चिकित्सालयों की व्यवस्था करनी पड़ती है. नए विद्यालय एवं चिकित्सालय बनाने में भूमि का कुछ क्षेत्रफल काम में आ जाता है.
यातायात के मार्गों एवं साधनों की भी देश के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका होती है. फोर लेन और इससे भी अधिक चौड़ी सड़कों के निर्माण में एवं रेलवे लाइनों को बिछाने में भूमि का कुछ अंश काम में लिया जाता है.
उपरोक्त सभी प्रकार से काम में ली गई भूमि का योग करने पर हम इस निष्कर्ष पर पहुँचते हैं कि कृषि योग्य भूमि का एक बहुत बड़ा भाग इन्हीं कार्यों में चला जा रहा है और कृषि की भूमि कम होती जा रही है.
अभी तक हमने सिमटती धरती पर प्रकाश डाला है अब कुछ चर्चा बढ़ती दूरियों पर भी कर लेते हैं.
पाश्चात्य संस्कृति का भारतीय संस्कृति पर अमिट प्रभाव पड़ा है. आज की युवा पीढ़ी भारतीय संस्कृति के विचार "जियो और जीने दो" के स्थान पर पाश्चात्य संस्कृति के विचार "खाओ पियो मजे उड़ाओ" में विश्वास करती है. इसी कारण से युवा पीढ़ी एकाकी परिवार में रहना पसंद कर रही है.
बढ़ती आवश्यकताओं ने भी व्यक्ति को अलग रहने के लिए मजबूर कर दिया है. तेजी से विकास होने के कारण आज मनुष्य की आवश्यकताएं इतनी बढ़ गई है ं कि वो स्वयं की आवश्यकताओं को भी पूरा नहीं कर पा रहा है इस कारण से मनुष्य स्वार्थी बन गया है.
रोजगार के लिए कुछ प्रवासी श्रमिक महानगरों में रहने लगते हैं. इनके पास समयाभाव रहता है, इनका अपना अलग ही जीवन होता है. पास में रहने वाला अपने पड़ोसी से कोई मतलब नहीं रखता है.
पारिवारिक कलह भी लोगों के बीच दूरियां बढ़ने का एक मुख्य कारण है.कई बार साथ साथ रहने वालों की भी बोलचाल नहीं होती है और अधिक टकराव बढ़ जाने पर अलग रहने की नौबत आ जाती है.
व्यक्ति की मनोदशा या यूँ कहें कि जीवन में विकास केवल अलग रहकर ही हो सकता है लोगों की ऐसी मानसिकता भी लोगों के बीच दूरियां बढ़ाने का एक मुख्य कारण है.
स्वतंत्रता विकास के लिए आवश्यक है किन्तु हर इंसान स्वतंत्र रहना चाह रहा है , उसे किसी का हस्तक्षेप स्वीकार नहीं है इस कारण परिवार के सदस्यों में दूरियां बढ़ती जा रहीं हैं.
जनसंख्या नियंत्रण एवं व्यावहारिक ज्ञान द्वारा समस्या का समाधान खोजा जा सकता है.