दीना एक छोटे से गाँव में रहता था. गाँव छोटा तो था ही और इसमें सुख सुविधा नाम की कोई चीज नही ं थी. गाँव में रास्ते कच्चे ही थे. वर्षा ऋतु में तो गाँव में किसी के घर से किसी दूसरे के घर जाना भी बड़ा मुश्किल होता था. बाद में कुछ रास्तों में खड़ंजा पड़ गया था. गाँव में बिजली भी अभी नहीं आई थी. गाँव में एक शिव मंदिर और एक प्राइमरी स्कूल था. दीना की शिक्षा इसी प्राइमरी स्कूल में कक्षा पांच तक ही हो पाई. गरीबी के कारण उसके पिता शिक्षा के लिए उसे और कहीं नहीं भेज पाए थे.
दीना के पिता कृषि कार्य करते थे. दीना भी अपने पिता के कार्य में हाथ बंटाता था. दीना अभी छोटा ही था किन्तु अपने पिता के खेत को जाते समय सदा उनके साथ जाता था. दीना के पिता जिस दिन सुबह का नाश्ता किए बिना ही खेत को चले जाते तो दीना ही नाश्ता लेकर खेत को जाता था. धीरे धीरे दीना कुछ बड़ा हो गया.अब रिश्तेदार दीना के पिता से दीना का विवाह करने को कहने लगे. रिश्तेदारों का ज्यादा दबाव पड़ने के कारण दीना का विवाह कम उम्र में ही कर दिया गया.
दीना का विवाह एक धनदेई नाम की अनपढ़ लड़की से हुआ. इसका कारण यह रहा कि उस समय लड़कियों को पढ़ाना उचित नहीं मानते थे. लोगों का कहना था कि पढ़ लिखकर भी लड़की घर का काम ही करेगी. कुछ लोग यह भी कहते कि लड़की पराए घर का धन है, उसको पढ़ाने से हमें कोई लाभ मिलने वाला नहीं है. धनदेई बड़ी सुशील बहू थी. अपने सास ससुर की सेवा करती और घर गृहस्थी का काम बड़े मनोयोग से करती थी. दीना के माता पिता भी अपनी पुत्र बधू का बहुत ख्याल रखते थे.
दीना के पिता के पास खेती की अधिक जमीन नहीं थी किन्तु और कोई काम न मिलने के कारण दीना भी अपने पिता के साथ खेती कार्य करने लगा. खेती के कार्य में जोखिम बहुत अधिक होता है. कभी सूखा तो कभी बाढ़, चूहे और फसलों की बीमारियां भी फसलों को बहुत नुकसान पहुंचाती है ं. अवारा पशु- हैल विजार(गाय, सांड) भी खेती में बहुत नुकसान पहुंचाते हैं. एक दिन दीना और उसके पिता अपनी फसल देखने गए. खेत में गेहूँ की फसल खड़ी थी.फसल को हैल विजार ने चरकर बहुत बर्बाद कर दिया था. दीना के पिता का गेहूँ की फसल का नुकसान देखकर पसीना छूट गया.दीना से बोला, दीना जरा हिंअन तौ अइए.
दीना- का है पापा?
पिता-खेत मैं आज फिर हैल विजारन नै भौत नुकसान करो है.
दीना- हाँ, पापा का करो जाय.
पिता- का करो जाय, सरकार नै जौ भौत बुरो करो है कि इन हैल विजारन को कोई इंतजाम नाय करो है.
दीना- फिर का करैं पापा?
पिता- अब हम ई कौ इनको कुछ इंतजाम करनो परैगो.
दीना- हांँ, पापा बात तौ सई कै रये हौ.
पिता- बेटा तुम कल बजार जइयो और कोई प्लास्टिक की मजबूत सी रस्सी लै अइयो.
दीना- हाँ, पापा कुछ तौ करनोई परैगो.
पिता- और लोगन नै तौ काँटे के तारौ लगाय दये हैं. लेकिन जौ गलत करो है, बेटा. हम गैया की पूजा करत हैं, उनै गऊ गिरआस देत हैं, इसलय मैंने तो सै पिलास्टिक की रस्सी मंंगाई है.
दीना- ठीक है पापा, मैं रस्सी लै आऊंगो तइ खेत की बाढ़ कर लेंगे.
पिता- मैंनै थुनियां(लकड़ी का पोल) बनाय लइ हैं. चलौ आज खेत की बाढ़ कर देत हैं.
दीना और उसके पिता ने अबारा पशुओं से अपनी फसल सुरक्षा के लिए खेत के चारों ओर प्लास्टिक की रस्सी की बाढ़ कर दी.
अपने विवाह से पहले धनदेई शिवजी की पूजा करती थी जैसे कि सभी कन्याएं अच्छा वर मिलने हेतु भगवान शिव की पूजा करतीं हैं. धीरे धीरे बहुत समय बीत गया. धनदेई के कोई बच्चा नहीं हुआ.अब धनदेई की सास को भी बहुत चिंता होने लगी कि बहू के कोई बच्चा नहीं है. धनदेई की सास ने लोगों से पूंछा सबने तरह तरह की बातें बताईं. धनदेई को अपनी भक्ति पर अटूट विश्वास था.अब दीना और धनदेई दोनों ब्रत रखते और शिवजी की पूजा करते. ईश्वर की अडिग भक्ति करने पर हर इंसान की इच्छा पूरी हो जाती है. एक साल बाद धनदेई ने पुत्र को जन्म दिया. शिवजी की कृपा से पुत्र का जन्म हुआ था इसलिए दीना और उसकी पत्नी धनदेई ने अपने पुत्र का नाम शिवलाल रखा.अब धनदेई के सास ससुर भी खुश थे.
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जिस पर ईश्वर की कृपा हो उसका सब काम ठीक होता चला जाता है. समय कब गुजर जाता है कुछ पता ही नहीं चलता है. शिवलाल कब कैसे बड़ा हुआ कुछ पता ही नहीं चला. उसने पास के गाँव में स्थित इंटर कालेज से इंटर की परीक्षा भी उत्तीर्ण कर ली. शिवलाल ने अपने बाप दादा की कृषि व्यवसाय में होती दुर्दशा से काफी सीख ले ली थी. उसने अब खेती न करने का पूरा मन बना लिया था. नौकरी मिलना भी कोई आसान काम नहीं होता है. शिवलाल ने भी नौकरी के लिए प्रयास किया. उसने कोई प्रशिक्षण तो प्राप्त किया नही ं था. अत: सिडकुल की किसी कंपनी में उसे कोई छोटा मोटा जाब ही मिल पाया. अब उसकी नौकरी की चर्चा नाते रिश्तेदारों में होने लगी थी और उसके रिश्ते वाले आने लगे थे.
दीना और उसकी पत्नी धनदेई की कुछ जगह अपने बेटे के रिश्ते की बात चलने के बाद बड़े सोच समझ कर उन्होंने अपने बेटे का रिश्ता तय कर लिया. शिवलाल का विमला नाम की लड़की से रिश्ता तय हुआ. विमला हाईस्कूल पास थी. दीना और उसकी पत्नी धनदेई ने बड़े धूमधाम से शिवलाल का विवाह किया. विवाह के बाद शिवलाल और उसकी पत्नी विमला सुखपूर्वक रहने लगे. विमला बड़ी सुशील थी. वो अपने सास ससुर का बहुत आदर करती थी और उन्हें मम्मी पापा कहकर बुलाती थी. उसके सास ससुर भी उसे अपनी लड़की को तरह ही मानते थे. इनमें कभी कोई अनमन नहीं हुई.
लगभग दो साल बीते होंगे कि विमला गर्भवती हो
गयी.अब उसके स्वास्थ्य की देखभाल करना जरूरी था. घर के बुजुर्ग ऐसे काम में अक्सर अपनी चलाते हैं. दीना और उसकी पत्नी धनदेई अपने समय की बातें सुनाते और किसी स्वास्थ्य कर्मी की बात नहीं मानते थे.अब विमला कुपोषण का शिकार हो चुकी थी क्योंकि गर्भवती महिला को अतिरिक्त पोषण की आवश्यकता होती है. किसी तरह समय बीतता गया कमजोरी की दशा में ही विमला ने पुत्र को जन्म दिया. पंडित जी ने बालक का नाम सुखलाल रखा. विमला का स्वास्थ्य निरंतर खराब होता चला गया.अब विमला को टी. बी. रोग हो चुका था. विमला अपने जीवन में और कुछ देखती उससे पहले ही वो भगवान को प्यारी हो गई.
सुखलाल अभी छोटा ही था. अपनी माँ का प्यार उसे नसीब नहीं हुआ.अब सुखलाल की देखभाल उसके पापा और उसके दादा दादी ही करते थे. माँ जैसा प्यार बालक को कोई नहीं दे सकता है. दादा दादी को सुखलाल बोलने में अड़चन होती थी वे सुखलाल को सुकलाल कहकर पुकारते थे. विमला की मौत के बाद शिवलाल टूट चुका था. उसके सामने सबसे बड़ी समस्या यह थी कि वो अपनी नौकरी करे या सुखलाल की देखभाल करे.अब उसे विमला का प्रेम याद आता था. घर में जब भी कोई अच्छी चीज होती थी तो विमला उसे खुद न खाकर शिवलाल को खिला देती थी.विमला शिवलाल से बहुत प्यार करती थी और हर मुसीबत में उसका साथ देती थी.
शिवलाल की उम्र अभी पच्चीस साल हुई थी. उसके परिवार वाले और नाते रिश्तेदार भी शिवलाल को दूसरा विवाह करने के लिए कहने लगे. शिवलाल इस वजह से अपना दूसरा विवाह नहीं करना चाहता था कि उसकी दूसरी पत्नी सुखलाल के साथ अच्छा व्यवहार नहीं करेगी. रस्सी भी बार बार के घर्षण से लोहे और पत्थर जैसी कठोर चीज पर अपना निशान बना देती है. आखिरकार सभी के बार बार समझाने पर शिवलाल भी अपना दूसरा विवाह करने के लिए राजी हो गया.
शिवलाल का दूसरा विवाह उसके दूर के रिश्तेदार के यहाँ से हुआ. शिवलाल की दूसरी पत्नी का नाम रूपा था. रूपा ने बी.ए. तक पढाई की थी लेकिन शिवलाल की नौकरी को देखकर रूपा के पिता ने रूपा का विवाह शिवलाल के साथ कर दिया. रूपा का विवाह एक ऐसे परिवार से हुआ जिसमें अधिक सुविधाएं नहीं थीं लेकिन लड़की का विवाह जहाँ हो जाये उसे उस घर में किसी तरह रहना ही पड़ता है. रूपा को परिवार के सदस्यों के साथ अपने आप को एडजस्ट करना पड़ रहा था.इस कारण रूपा की अपनी सास से अक्सर अनमन हो जाया करती थी. रूपा की सास धनदेई कभी किसी काम को लेकर और कभी सुखलाल की देखभाल को लेकर कुछ न कुछ टोंका- टांकी करती रहती थी. धनदेई अपनी पुरानी बहू विमला के बारे में सोचकर अकेले ही कुछ न कुछ बड़ बडाती रहती थी. एक बार अकेले में धनदेई कह रही थी कि इस रूपा से तो विमला ठीक थी. कहते हैं दीवारों के भी कान होते हैं किसी तरह इस बात की भनक भी रूपा के कानों तक पहुँच गयी. रूपा बौखला उठी और अपनी सास से बोली-
रूपा-मैं बहुत दिनों से सुन रही हूँ.
धनदेई- क्या सुन रही है?
रूपा- यही कि तुम मुझसे चिढ़ती हो.
धनदेई- ऐसा नहीं है बहू !
रूपा- और कैसा है?
धनदेई- मैं रोज देखती हूँ कि तू देर से उठती है. बर्तन जूठे ही पड़े रहते हैं. खाना भी ठीक से नहीं पकाती है.
रूपा- तो तुम बर्तन साफ कर दिया करो.
धनदेई- फिर तू क्या करेगी?
रूपा- मेरे लिए घर में बहुत काम रहते हैं.
धनदेई- कौन से काम?
रूपा- क्या लिस्ट बनाकर दूँ?
धनदेई- फिर भी---------
अब रूपा के मन की बात उसके मुंह पर आ गयी, बोली- इस सुखलाल का भी तो बहुत काम है.
धनदेई समझ गयी कि रूपा से सुखलाल देखा नहीं जा रहा है. इस तरह की बातें आए दिन होती रहती थीं लेकिन दीना धनदेई को डाँट देता था और किसी तरह माहौल शांत कर देता था.
सुखलाल अब पाँच छ: साल का हो चुका था. शिवलाल ने सोचा कि सुखलाल का ऐडमिशन किसी पब्लिक स्कूल में करा दे किन्तु रूपा ने उसका ऐडमिशन गाँव के प्राइमरी स्कूल में कराने की जिद्द ठान दी और उसका ऐडमिशन गाँव के प्राइमरी स्कूल में करवा दिया. अब सुखलाल गाँव के प्राइमरी स्कूल में पढ़ने जाता और घर आने पर रूपा सुखलाल को घर का कोई न कोई काम करने को कह देती थी. रूपा सुखलाल के खाने पीने का ध्यान नही ं रखती और कभी कभी अनावश्यक रूप से उसे डाँट भी देती थी.
समय बीतता गया और अब रूपा के भी दो बच्चे हो गये. लड़का बड़ा और लड़की छोटी थी. लड़के का नाम टिंकू और लड़की का नाम लवली था. दोनों बच्चों के नाम रूपा ने अपनी मर्जी से रखे थे. रूपा अपने बच्चों की साफ सफाई और खाने पीने का पूरा ध्यान रखती, सुखलाल कभी समय से पहले भूख लगने पर खाना मांगता तो उसे डाँट कर भगा देती थी. शिवलाल बच्चों को खाने के लिए बाजार से कोई चीज लाता तो रूपा सुखलाल को कम चीज और अपने बच्चों को ज्यादा चीज देती थी. रूपा ने अपने दोनों बच्चों का ऐडमिशन एक अचछे पब्लिक स्कूल में करवा दिया.अब रूपा अपने बच्चों पर अधिक ध्यान देती थी. रूपा के पास मोबाइल फोन भी था. उसके बच्चे मोबाइल से गेम खेलते रहते थे किन्तु सुखलाल को कभी मोबाइल छूने भी नहीं देती थी. सुखलाल के केवल दो ही काम थे पढ़ाई करना और घर के कामों में हाथ बंटाना. शिवलाल सुखलाल के बारे में रूपा से कभी कुछ कहता तो रूपा उसकी एक न चलने देती.
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समय का पहिया चलता रहा. रूपा की एक एक डाँट ने सुखलाल को सोने जैसा तपाकर शुद्ध करने का काम किया. रूपा के दोनों बच्चे बडे़ लाड़ प्यार में पल रहे थे. इन बच्चों से कभी कोई गलती हो जाती तो रूपा कभी नहीं डाँटती थी और अगर शिवलाल कुछ कहता तो उससे लड़ जाती थी. संसार में सबसे अधिक डर आदमी को अपनी पत्नी से ही लगता है.
सुखलाल पढा़ई के साथ साथ खेल प्रतियोगिताओं में भी प्रतिभाग करता था. दौड़ प्रतियोगिता में वो सदा फस्ट आता था. इस बार उसने इण्टर की परीक्षा प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण की थी. टिंकू और लवली की पढ़ाई का स्तर ज्यादा अच्छा नहीं था बस किसी तरह पास होते जा रहे थे.
अगले महीने सेना में भर्ती होनी थी. सुखलाल एक अच्छा रेसर था. वो दौड़ की प्रेक्टिस हमेशा करता रहता था. सेना में भर्ती होने की इच्छा के कारण उसने दौड़ का और अधिक अभ्यास किया. इस भर्ती में सुखलाल ने अपने पहले ही प्रयास में लिखित और दौड़ की परीक्षा पास कर ली और उसे ट्रेनिंग के लिए भेज दिया गया. अब शिवलाल और उसके माता पिता प्रसन्न थे, रूपा के मुख से उदासी झलक रही थी.