गर्मी पर कविता | Poem on Summer Season in Hindi

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    गर्मी ने हैं जुलम गुजारे
    कपड़े भी अब लगें न प्यारे
    आए पसीना भीगें कपड़े
    सूख गए तो लगते अकड़े
    गर्मी से जब मन घबराता
    बाहर भीतर चैन न आता
    छत ऊपर से तपती भारी
    पंखे की हवा लगे न प्यारी 
    बिस्तर भी गर्मी से गरमाया
    बिन बिस्तर के सोना भाया 
    खाना पकाना भी है मुश्किल
    रसोई में न रहा जाए बिल्कुल
    नल का पानी अमृत जैसा
    खूब पियो कुछ लगे न पैसा
    गर्मी में हम खूब नहाएं
    जल को व्यर्थ कभी न बहाएं
    धन्य हमारे कृषक भाई
    गर्मी में भी करें जुताई
    टप-टप गिरे पसीना उनका
    मानो जल गिरता वर्षा का
    गरीबों को लगती गर्मी सर्दी
    धनवानों की चलती मनमर्जी
    गर्मी में वे  A C को चलाते
    सर्दी में वे हीटर को जलाते
    फ्रिज और  A C गर्मी बढ़ाते
    गर्मी का दुख हम सब पाते
    जीव जन्तु सब गए अकुलाए
    सोचें कैसे गर्मी जाए
    वृक्ष लगें गर्मी में प्यारे
    गर्मी के संकट से उबारें
    वृक्ष समान न कोई हितकारी
    काटा वृक्ष गयी मति मारी





    कमैंट्स