पर उपदेश कुशल बहुतेरे | Example is better than precept

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    व्यक्ति को अपने, समाज और देश के विकास के लिए स्वयं को सुधारने की आवश्यकता है, दूसरों को उपदेश देने से काम नहीं चलेगा. दूसरों को उपदेश देने की परम्परा पहले से ही चली आ रही है. गोस्वामी तुलसीदास जी ने भी इस सम्बन्ध में रामचरितमानस  में लिखा है- पर उपदेश कुशल बहुतेरे अर्थात दूसरों को उपदेश देने वाले लोगों की संख्या समाज में बहुत अधिक होती है.

    अब प्रश्न यह उठता है कि केवल दूसरों को अपना सुझाव दें और स्वयं उस बात पर अमल न करें तो क्या इच्छित कार्य सम्पन्न हो सकता है? मेरे विचार से ऐसा सम्भव नहीं है. इस संदर्भ में एक लघु कथा आपके साथ साझा कर रहा हूँ जिससे यह विचार आसानी से स्पष्ट हो जाएगा. 

    एक राजा था. राजा के मन में एक उत्तम विचार आया. राजा ने सोचा कि उसके और अन्य राजाओं के राज्य में भी पानी के तालाब सर्वत्र दिखाई देते हैं किन्तु उसने दूध का तालाब कहीं नहीं देखा है. यदि मैंने अपने राज्य में एक दूध का तालाब बनवा दिया तो मेरा यश दूर दूर तक फैल जाएगा और मैं अद्वितीय राजा हो जाऊँगा. ऐसा विचार कर उसने कुशल कारीगरों से एक सुंदर तालाब बनबाया. संध्या के समय अपने सम्पूर्ण  राज्य में राजा ने यह ढिंढोरा पिटवाया कि बड़ी खुशी की बात है कि आप सभी के सहयोग से हमारे यहाँ एक अद्भुत, अद्वितीय  दूध का तालाब बन जाएगा. 

    तालाब को दूध से भरने हेतु कल सुबह ब्रह्मम्हूर्त  में प्रत्येक घर से एक लीटर दूध श्रृद्धा पूर्वक तालाब देवता को दान करना है. शुभ समाचार सुनकर जनता खुशी से झूम उठी. रात को कल बनने वाले दूध के तालाब ने  राजा को सोने न दिया,राजा रातभर इसी उधेड़ बुन में लगा रहा कि वह अपने लिए एक लीटर दूध की व्यवस्था कैसे करे. विचार चिंतन करते लगभग ब्रह्मम्हूर्त आने ही वाला था कि राजा के मन - मेमना को स्वार्थ-भेड़िए ने दबोच लिया. राजा ने सोचा कि मैं शीघ्र ही जाकर क्यों न तालाब में एक लीटर पानी डाल दूँ इतने सारे दूध में मेरा एक लीटर पानी दिखाई भी न देगा और तालाब भी दूध का बन जाएगा. राजा ने ऐसा ही किया.

    सूर्य देव उदय नहीं हुए थे किन्तु उनके आगमन की सूचना से ही अंधकार भयभीत हो रहा था. अब जनता भी एक एक लीटर दूध तालाब देवता को अर्पित करने जाने ही वाली थी कि एक वयोवृद्ध से सूचना प्राप्त हुई कि तालाब में दूध नहीं पानी ही डाला जा रहा है. अब जनता की खुशी का ठिकाना न रहा. सभी ने एक लीटर के बजाय दो दो लीटर जल के सहयोग से तालाब को भर दिया. किसी ने ठीक ही कहा है- यथा राजा तथा प्रजा . तालाब दूध का नहीं पानी का ही बन पाया.

    व्यक्ति, समाज तथा देश का सुधार तभी संभव हो सकता है जबकि व्यक्ति दूसरे को सुझाव न दे बल्कि वो कार्य स्वयं करे  जिससे अन्य लोगों को प्रेरणा एवं शिक्षा मिल सके.

    कमैंट्स