परिवर्तन प्रकृति का आवश्यक नियम है. प्रकृति में सदा कोई न कोई परिवर्तन होता ही रहता है. कोई भी परिवर्तन यकायक नहीं हो जाता है वरन् इसमें काफी समय लग जाता है. परिवर्तन एक निरंतर चलने वाली प्रक्रिया है. कुछ परिवर्तन कम समय में हो जाते हैं जबकि कुछ परिवर्तनों में तो बहुत अधिक समय लग जाता है.
प्रकृति की तरह ही मानव जीवन में भी परिवर्तन होता है. जिस प्रकार ऋतुओं में जाड़ा, गर्मी और बरसात आती है उसी प्रकार मनुष्य के जीवन में भी बचपन, जवानी और फिर बुढ़ापा आ जाता है.
मनुष्य के जीवन के तरह ही समाज में भी परिवर्तन होता है, इसे सामाजिक परिवर्तन कहा जाता है. कोई भी सामाजिक व्यवस्था जो समाज में काफ़ी समय से चली आ रही है उसे गलत तो नहीं कहा जा सकता है. इसके बारे में इतना ही कहा जा सकता है कि प्रचलित सामाजिक व्यवस्था समयानुकूल नहीं है, इसमें सुधार की आवश्यकता है.
वर्तमान भारतीय समाज में महिला सशक्तिकरण इस ओर एक सराहनीय कदम है. बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ , सरकार की एक अच्छी योजना है. समाज में लिंगानुपात में असंतुलन एक गंभीर समस्या है. समय पर इसपर ध्यान नही ं दिया गया तो गंभीर परिणाम भुगतने पड़ सकते हैं. देश में आधी संख्या महिलाओं की है इनका शिक्षित होना और समाज की मुख्य धारा से जुड़ना समाज और देश के विकास के लिए परमावश्यक है.
इसमें धयान देने योग्य बात यह है कि समाज में जब भी कोई अच्छा काम होता है तो सब उसी के पीछे पड़ जाते हैं और लम्बे समय बाद उस काम का गुण अवगुण में परिवर्तित हो जाता है. हमेशा यह धयान रहे कि संतुलन की स्थिति एक आदर्श स्थिति होती है इस स्थिति के बाद भी यदि परिवर्तन होता है तो उसका परिणाम किसी के भी हित में नहीं होता है.
वर्तमान समय में एक नया दौर आया है वो है नैतिक मूल्यों में गिरावट. यह भी परिवर्तन का ही एक रूप है. मेरे विचार से पाश्चात्य संस्कृति को अंगीकार करने का दुष्परिणाम इस रूप में परिलक्षित हुआ है. पाश्चात्य संस्कृति से हमें बहुत सारे गुण प्राप्त हुए हैं वहीं कुछ दोष भी उपहार स्वरूप मिले हैं. अवगुण को गुण से अलग भी नहीं किया जा सकता है जिस प्रकार झूठ को सच से. वास्तव में देखा जाए तो अकेले में इनमें से किसी का पहचान पाना असंभव है.
समाज में परिवर्तन आवश्यक है. परिवर्तन सदा ही हित के लिए किया जाता है, अहित के लिए नहीं. जिस परिवर्तन से समाज का हित नहीं होगा वो समाज में टिक भी नहीं पाएगा.