इससे समाज में बढे़, तुम्हारा मेल मिलाप ||
प्रेम तत्व सबसे बड़ा, इससे बड़ा न कोय |
जो इसको समझे भला, क्यों न पंडित होय ||
को जाने किस बाल के, लिखो है कहा ललाट |
जीवन में बन जाये कुछ, या रह जाय सपाट ||
माता-पिता चाहे भला, बालक करे विकास |
ध्यान उस पर दें सदा, दूर हो या पास ||
जीवन में सफलता का, सबसे बड़ा है राज |
काम को टालो नहीं, करो आज का आज ||
फिर फिर फिर तू क्या करे, फिर में तो है फेर |
काम को पूरा कर अभी, बेर हो या अबेर ||
ईश्वर सबका एक है, मानव में क्यों भेद |
जात-पांत को देखकर, यही तो होता खेद ||
जो तू चाहे जगत में, तेरा हो सम्मान |
तुझे न करना चाहिए, किसी का अपमान ||
चिंता चिता से बुरी है, तू चिंता कर नाय |
चिता जरावै मरे को, यह तो जिंदा जराय ||
दुख में भी हंसते रहो, मत हो कभी उदास |
जैसे कीचड़ में कमल, करता सदा विकास ||
कष्टों से तुम ना डरो, इनसे होय सुधार |
ज्यों तपने के बाद ही, सोना पाय निखार ||
शीतल निर्मल जो बने, सबका प्रिय हो जाय |
ज्यों पूनम के इन्दु को, देख सभी हरसाय ||
विनम्र जन तो विपत से, उसी भांति बच जाय |
आंधी में कोमल वृक्ष, ज्यों न गिरने पाय ||
ईर्ष्यालु जन जगत में, सुखी नहीं रह पाय |
निज-दुख पीरै कम इसे, पर-सुख अधिक जराय ||
सज्जन और दुर्जन में, बस इतना सा भेद |
सज्जन पर-दुख से दुखी, दुर्जन पर-सुख खेद ||
पतंगहि प्रेम सराहिए, कर दे जान निछौर |
भ्रमर रस लोभी पहुप, चूमत ठौरहि ठौर ||
कृष्ण रंग पक्का अति, जो इसमें रंग जाय |
छुटाए से छुटता नहीं, फिर दूजा क्यों भाय ||
सुन्दरि सर्पनि विष वसै,सदा मुखै की ओर |
काम गरल से वह बचै,जो लखै पाद के छोर ||
सफेद बाल हो ं जानिए, ईश्वर का संकेत |
काला धन्धा त्याग दो, अब तो करो श्वेत ||
काम करूँ कैसे करूँ, लगा रहे यह रोग |
देख मुझे क्या कहेंगे, ये अति मौजी लोग ||
सोच सदा आवै हंसी, लोक तेरी यह रीत |
सच को सच नहिं कह सके, किसको किसकी धीत ||
हे ईश्वर इस जीव को, सदा हो ऐसा भान |
महा विषैली दुनिया में, बचा रहे अनजान ||
आलसी जन जगत में, कुछ भी नहिं कर पाय |
कर्म विमुख रहता सदा, फल भी कहाँ से आय ||
शुभ अशुभ अरु धर्म अधर्म, में तू मत भरमाय |
ईश्वर को अरपै सभी, कर्म करे क्यों नाय ||
कटुक वचन स्रवन शक्ति, दीजै ईश अपार |
सकल जगत से कर सकूँ, मैं भी सच्चा प्यार ||
कलम करे उस काम को, जो न करै तलवार |
देखन में छोटी लगै, कार्य करै अपार ||
झूठ बोलै तो सच कहे, झूठ कहे सच जान |
हे ईश्वर किसने दिया, ऐसा अद्भुत ज्ञान ||
सत्य बोल अरु प्रिय भी, मत बोल अप्रिय सत्य |
छूट न जाय प्रिय कभी, चाहे टूटै तथ्य ||
किस जाना किस पाइया, तेरा राज समाज |
झूठे से क्यों खुश रहे, सच्चे से नाराज ||
सत्य वचन सुन क्रुद्ध क्यों, ऐसा रखिये याद |
औषधि में देखा नहीं, जाता कभी स्वाद ||
सत्य असत्य कुछ नहिं प्रिय, और नहिं प्रिय दक्ष |
उलझे को तो वह प्रिय, जो ले उसका पक्ष ||
सत्य कहीं छिपता भला, ऐसा ले तू जान |
परनिंदा करके कोई, जग में बना महान ||
मितन बढ़ाई करन सुनन, से तू क्यों कतराय |
तारागण के उगन पै, चन्द्र छोट हो नाय ||
मन जिवड़ि हो सरल तंग, दुख विक्षोभ कम होय |
पड़ि रसरि में उलझ ग्रंथि, खेद अधिक हो तोय ||
चाहे होवे हाथ में, गन , भाला या तीर |
आत्म-बल बिन कोई भी, लड़ नहिं पाय वीर ||
निज निज दृष्टिकोण से, सब तो हैं विद्वान |
रे अज्ञानी मत कभी, किसी को मूरख जान ||
मानव यदि चाहे भला, जीवन उसका होय |
वृक्षारोपण खूब करे, प्रदूषण जो खोय ||
प्रदूषण से जो बचहिं, जल, मृदा, ध्वनि, वयार |
जग जीवन की जग पड़े, सोई हुई बहार ||