सामाजिक नीति Social Policy

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     जो तू चाहे जगत में, तेरी फूले फुलवार |
    तो तुझको ना चाहिए, किसी से करना रार ||

    जीवन में आते सदा, सुख दुःख दोनों तोय |
    जो चाहे अपना भला, दोनों में सम होय ||

    जो तू चाहे जगत में, तेरा हो कल्यान |
    माता पिता और गुरू, सबका कहना मान ||

    रक्षक ही जब हो भक्षक, तब हो कौन सहाय |
    फिर प्राणों के बचने का, नहीं कोई उपाय ||

    जो तू चाहे जगत में, तेरा हो कुछ मोल |
    तो अपने ज्ञान चक्षु को, जल्दी लेना खोल ||

    ज्ञानी होने का कभी, मत करना अभिमान |
    घट जायेगा जगत में, तेरा फिर सम्मान ||

    मित्रों देखो जगत में, वह सुख से रह पाय |
    दूसरों की चीज को, देख न जो लुभयाय ||

    दोस्ती और दुश्मनी, दूर से जो कर पाय |
    ऐसे व्यक्ति के जीवन में, कष्ट कभी न आय ||

    संगत करना साधु की, दुर्जन का न साथ |
    पछतायेगा फिर कभी, माथे पै धर हाथ  ||

    संगत का ऐसा असर, कभी न खाली जाय |
    जैसी संगत जाये तू, वैसा ही फल पाय ||

    सज्जन तो बिगड़े नहीं, चाहे होय कुसंग |
    चन्दन पर विष ना चढ़े, लिपटें लाख भुजंग ||

    दुष्ट न छोड़ें दुष्टता, लाख जतन कर कोय |
    ज्यों पकने के बाद भी, मिर्च न मीठी होय ||

    दुर्जन से बचकर रहो, जो तुम चाहो खैर |
    इनसे भली न दोस्ती, और न इनसे बैर ||

    पाप से तो घृणा करो, अरु पापी से नाय |
    ज्यों आम को चूस लें, गुठली देंय गिराया ||

    यदि तू चाहे जीत तो, परजन लिए मिलाय |
    ज्यों बिन बेट कुल्हाड़ी, लकड़ी काट न पाय ||

    सदाचार के बिना तो, नर कुछ भी नहिं पाय |
    घूमेगा सब जगत में, दर दर ठोकर खाय ||

    समय का पालन जो न  करे, सो पीछे रह जाय |
    जीवन में फिर वह कभी, उन्नति नहिं कर पाय ||

    तू निज मन की व्यथा को, जग में मती सुनाय |
    बांट न पावै कोई भी, उल्टी हंसी बनाय ||

    मन में दुख की हो अती, निज जन देय सुनाय |
    इससे तेरा दुख तभी, कुछ हल्का हो जाय ||

    भाईयों से तू कभी, रखना नहीं छिपाव |
    दुख का जख्म यदि बना तो, यही भरेंगे घाव ||

    जहाँ तक हो न कीजिये, आपस में कभी बैर |
    अपना दुश्मन हो गया, फिर काहे की खैर ||

    अज्ञानी तू मिल न चले, बन्धु अरु रिश्तेदार |
    नाव फंसेगी  भंवर में, यही बनें पतवार ||

    कभी बुरा मत मानिये,, सज्जन का प्रहार |
    इसे तो ऐसे जानिए, जैसे गाय दुधार ||

    अति न कर किसी काम की, फिर तो इति ह्वै जाय |
    जैसे अति खींचे रबड़, अन्त में टूटी पाय ||

    बिन मांगे मोती मिले ं, मांगे मिले न भीख |
    मांगे मान घट जात है, यह सतगुरु की सीख ||

    बिना त्याग बलिदान के, जग में कुछ नहिं तोय |
    जैसे बिन वाती कटे, उजियारा नहिं होय ||

    इस निर्दयी संसार में, ऐसो को दरिया तोय |
    तेरे दुख दरिया से मिले, जिससेे संगम होय ||

    जो तू चाहे जगत में, बनना अती  महान |
    तो मत करना कोई भी, बिल्कुल रे अभिमान ||

    स्वारथ कभी न कीजिये, अपराधन को मूल |
    इससे तो बन जायेंगे, तेरे पथ में शूल ||

    विस और विसवास हैं, दोनों एक समान |
    सोच समझकर कीजिये, विसवास का पान  ||

    सज्जन और नारियल का, एक समान सुभाव |
    ऊपर से कर्कश लगे, अन्दर कोमल पाव ||

    दुर्जन को तो  जानिए, बिल्कुल बेर समान |
    बाहर से अच्छा लगे, अन्दर गुठली जान ||

    फल तो मीठे बहुत हैं, जान सकै जो कोय |
    पर इनमें मीठा अती, धैर्य का फल होय ||

    नसा नहीं यह नशा है, मतलब इसका जान |
    जीवन में करना नहीं, कभी नशा का पान ||

    सीधे जन तो जगत में, कष्ट अधिक ही  पाय |
    ज्यों कानन में सरल विटप, पहले काटे जाय ||

    ज्ञानी रोये ज्ञान को, अज्ञानी अज्ञान |
    कह 'प्रसाद' इस जगत में, हर कोई परेशान ||







     





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