जो तू चाहे जगत में, तेरी फूले फुलवार |
तो तुझको ना चाहिए, किसी से करना रार ||
जीवन में आते सदा, सुख दुःख दोनों तोय |
जो चाहे अपना भला, दोनों में सम होय ||
जो तू चाहे जगत में, तेरा हो कल्यान |
माता पिता और गुरू, सबका कहना मान ||
रक्षक ही जब हो भक्षक, तब हो कौन सहाय |
फिर प्राणों के बचने का, नहीं कोई उपाय ||
जो तू चाहे जगत में, तेरा हो कुछ मोल |
तो अपने ज्ञान चक्षु को, जल्दी लेना खोल ||
ज्ञानी होने का कभी, मत करना अभिमान |
घट जायेगा जगत में, तेरा फिर सम्मान ||
मित्रों देखो जगत में, वह सुख से रह पाय |
दूसरों की चीज को, देख न जो लुभयाय ||
दोस्ती और दुश्मनी, दूर से जो कर पाय |
ऐसे व्यक्ति के जीवन में, कष्ट कभी न आय ||
संगत करना साधु की, दुर्जन का न साथ |
पछतायेगा फिर कभी, माथे पै धर हाथ ||
संगत का ऐसा असर, कभी न खाली जाय |
जैसी संगत जाये तू, वैसा ही फल पाय ||
सज्जन तो बिगड़े नहीं, चाहे होय कुसंग |
चन्दन पर विष ना चढ़े, लिपटें लाख भुजंग ||
दुष्ट न छोड़ें दुष्टता, लाख जतन कर कोय |
ज्यों पकने के बाद भी, मिर्च न मीठी होय ||
दुर्जन से बचकर रहो, जो तुम चाहो खैर |
इनसे भली न दोस्ती, और न इनसे बैर ||
पाप से तो घृणा करो, अरु पापी से नाय |
ज्यों आम को चूस लें, गुठली देंय गिराया ||
यदि तू चाहे जीत तो, परजन लिए मिलाय |
ज्यों बिन बेट कुल्हाड़ी, लकड़ी काट न पाय ||
सदाचार के बिना तो, नर कुछ भी नहिं पाय |
घूमेगा सब जगत में, दर दर ठोकर खाय ||
समय का पालन जो न करे, सो पीछे रह जाय |
जीवन में फिर वह कभी, उन्नति नहिं कर पाय ||
तू निज मन की व्यथा को, जग में मती सुनाय |
बांट न पावै कोई भी, उल्टी हंसी बनाय ||
मन में दुख की हो अती, निज जन देय सुनाय |
इससे तेरा दुख तभी, कुछ हल्का हो जाय ||
भाईयों से तू कभी, रखना नहीं छिपाव |
दुख का जख्म यदि बना तो, यही भरेंगे घाव ||
जहाँ तक हो न कीजिये, आपस में कभी बैर |
अपना दुश्मन हो गया, फिर काहे की खैर ||
अज्ञानी तू मिल न चले, बन्धु अरु रिश्तेदार |
नाव फंसेगी भंवर में, यही बनें पतवार ||
कभी बुरा मत मानिये,, सज्जन का प्रहार |
इसे तो ऐसे जानिए, जैसे गाय दुधार ||
अति न कर किसी काम की, फिर तो इति ह्वै जाय |
जैसे अति खींचे रबड़, अन्त में टूटी पाय ||
बिन मांगे मोती मिले ं, मांगे मिले न भीख |
मांगे मान घट जात है, यह सतगुरु की सीख ||
बिना त्याग बलिदान के, जग में कुछ नहिं तोय |
जैसे बिन वाती कटे, उजियारा नहिं होय ||
इस निर्दयी संसार में, ऐसो को दरिया तोय |
तेरे दुख दरिया से मिले, जिससेे संगम होय ||
जो तू चाहे जगत में, बनना अती महान |
तो मत करना कोई भी, बिल्कुल रे अभिमान ||
स्वारथ कभी न कीजिये, अपराधन को मूल |
इससे तो बन जायेंगे, तेरे पथ में शूल ||
विस और विसवास हैं, दोनों एक समान |
सोच समझकर कीजिये, विसवास का पान ||
सज्जन और नारियल का, एक समान सुभाव |
ऊपर से कर्कश लगे, अन्दर कोमल पाव ||
दुर्जन को तो जानिए, बिल्कुल बेर समान |
बाहर से अच्छा लगे, अन्दर गुठली जान ||
फल तो मीठे बहुत हैं, जान सकै जो कोय |
पर इनमें मीठा अती, धैर्य का फल होय ||
नसा नहीं यह नशा है, मतलब इसका जान |
जीवन में करना नहीं, कभी नशा का पान ||
सीधे जन तो जगत में, कष्ट अधिक ही पाय |
ज्यों कानन में सरल विटप, पहले काटे जाय ||
ज्ञानी रोये ज्ञान को, अज्ञानी अज्ञान |
कह 'प्रसाद' इस जगत में, हर कोई परेशान ||