रोज तुम्हारी गल मैं सुनता, आज तुम सुनों हमारी |
मन कहता है लिख दूँ ऐसा, दूर हो व्यथा तुम्हारी ||
चुन-चुन कर गल तुम लाते, तनिक नहीं घबराते हो |
स्वाद कहीं कड़ुवा नहीं हो जाय, सच में झूठ मिलाते हो ||
सच्चे लोगों की कमजोरी, झूठ नहीं सुन पाते हैं |
फलस्वरूप सच्ची ख़बरों से ,वे वंचित रह जाते हैं ||
सुनने वाले के मन को भाँप, तुम बातें खूब बनाते हो||
उसको होता बोर देखकर, नई कथा सुनाते हो ||
घर आए की इज्जत करना, यह संस्कृति हमारी है |
इसका फ़ायदा खूब उठाकर, चलती बात तुम्हारी है||
अच्छों-अच्छों को पीछे छोड़, तुम अपना काम बनाते हो |
बात करने की कला है तुममें, उसका लाभ उठाते हो ||
न्यूज़, मनोरंजन दो चैनल तुम्हारे, इनसे आदर मिलता है |
पता नहीं कब क्या कुछ कर दो, हर कोई तुमसे डरता है ||
भय है तुम्हारा इतना की सब, हाँ में हाँ मिलाते हैं |
ऐसे वैसे की बात नहीं, बड़े -बड़े हिल जाते हैं ||
बनता काम विगाड़ो तुम ही, विगड़ा तुम्हीं बनाते हो |
इसीलिए कहीं गाली मिलती, और कहीं पूजे जाते हो ||
सही को गलत समझ लेना, लोगों की आदत पुरानी है |
भला बताओ इस दुनिया में, तुमसे बड़ा कोई ज्ञानी है ||
ज्ञान तुम्हारा बहुत बड़ा है, लोग समझ कहाँ पायेंगे |
हाथ जोड़ प्रणाम करूँ, आप नारद मुनि कहलायेंगे ||